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________________ प्रशापनासूत्र स्तिकायःआकाशास्तिकायः, एते खलु त्रयोऽपि तुल्याः द्रव्यार्थतया सर्वस्तोकाः, जोवास्तिकायो द्रव्यार्थतया अनन्तगुणः, पुद्गलास्तिकायो द्रव्यातया अनन्तगुणः, अवमायो द्रव्याथै नया अन्न गुगः, एतेषां खलु भदन्त ! धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय-जीवास्तिकाय -पुद्गलास्तिकाय-अद्धा-समयानां प्रदेशारतया कतरे कतरेभ्यः अल्पावा, वहुका ना, तुल्या वा, विशेपाधिका वा ? गांतम ! धर्मास्तिमायः, अवर्मास्तिकायः, एतो सलु द्वावपि तुल्यौ प्रदेशार्थतया चा?) अल्प, बचत, तुल्प अथवा पिशेषाधिक हैं । (गोयमा) हे गौतम (धम्मत्थिकाए) धमौस्तिकाय (अधम्पत्थिकाए) अधौस्तिकाय (आगासल्धिकाए) आकाशास्तिकाय (एएणं तिन्नि वि तुल्ला) ये तीनों ही घराबर है (दवट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा से (सम्वत्थोवा) सच से कम (जीवत्यिकार) जीवास्तिकाय (दव्यद्वयाए) द्रव्य की अपेक्षा से (अपंतगुणा) अनन्तगुणा है । (पोग्गलत्थिकाए) पुद्गलास्तिकाय (दव्य याए अगंतशुणे) द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणा है (अद्धासमए दवट्ठयाए अणंतगुणे) अद्धाकाल द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं। (एएसिणं भंते !) हे भगवन् ! इन (धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय आगासत्थिकाय-जीवस्थिकाय-पोग्गलस्थिकाय-अद्धासमयाणं) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्शालास्तिकाय और अद्धाकाल में (पएसधाए) प्रदेशों की अपेक्षा से (कयरे कयरेहितो) कौन किसले (अप्पा या बहुया वा तुल्ला वा विखेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा !) (गोरमा ।) गौतम (धम्मत्यिकाए) धा४िाय (अधम्मत्यिकाए) मधर्मास्तिय (आगासास्थिकाए) मास्ति४ाय (एएगं तिन्नि तुल्ला) मात्रणे परामर छ (दव्वयाए) द्र०यनी अपेक्षाये (सव्यत्थोवा) माथी माछ। छे (जीवस्थिकाए) पास्तिय (दायाए) द्र०यनी अपेक्षामे (अण तगुणे) यनन्त छ (पोग्गलत्यिकाए) पुत्सा1ि४14 (दबढाए अण तगुणे) द्रव्यनी अपेक्षामे मनन्ता छ (अद्धासमए दव्यदृयाए अणतगुणे) माद्वास द्रव्यनी अपेक्षा मनन्ता छ। (एएसिगं झते ) मावन् ! (धनथिकाय अधम्मत्यिकाय आग सथिकायजीपथिकाय--पग्गिलथिकाय अद्धासमयाणं) यातिय, मस्तिय ४१२॥ स्तियतिय पुनसास्तिय अने मद्धा ४७ (पएसद्वयाए) प्रशानी अपेक्षाये (कयरे कयरेहितो) युनायी (अप्पो वा बहुया वातुल्ला वा विसे. साहिया वा ?) २६५ ३४! तुल्य २मा विशेषाधि छ ?
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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