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प्रबोधिनी टीका पद ३ सू.१२ कावतामयवतां चावलम्
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छाया - एतेषां खभन्त ! कायिणाम्, क्रोचकपायिनाम् मानपायिणाम्, मायाकपायिणाम्, लोमकपायिणाम्, अकपायिणाञ्च कतरे कतरेभ्यः अल्पा वा, बहुकावा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका : जीवाः अकपायिणः, मानक पापिणोऽनन्त गुणाः, क्रोधकपायिणो विशेषाधिकाः, माया कपायिणो विशेषाधिकाः, लोभ कपायिणो विशेषाधिकाः, सकपायिणो विशेपाधिकाः ॥ ॥ १२ ॥ टीका -- अथ कपाय द्वारमधिकृत्य जीवाल्पबहुत्वादिकं प्ररूपयितुमाह
कषायद्वार वक्तव्यता
शब्दार्थ - (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (सकसाईणं) कषाय चालों (कोहकसाई) व कपाय वालों (माणकसाईणं) मानकषाय वालों (माया कसाईणं) माया कषाय वालों (लोह कसाईणं) लोभ कषाय वालों (अकसाईण य) और अकपायों में (करे करेहिनो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेलाहिया वा ?) अल्प बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं । (गोगमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा जीवा अकसाई) सबसे कम जीव अकषायी हैं ( माणकसाई अनंतगुणा ) मानकषाय वाले अनन्तगुणा हैं ( कोहकसाई विसेसाहिया) कोध कषाय वाले विशेषाधिक हैं (मायाकसाई विसेसाहिया) माया here वाले विशेपाधिक हैं (लोहकसाई विसेसाहिया) लोभ कषाय वाले विशेषाधिक हैं ( सकसाई विसेसाहिया) सकषाय जीव विशेषाधिक हैं ।
अब कषायों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व कहते हैं
કપાય દ્વાર વક્તવ્યતા
शब्दार्थ- (एएसिणं भंते ।) भगवन् ! या (सकसाई) उपाय वाला (कोह कसाईणं) अध उषाय वाणा ( माणकसाईणं) भान उपाय वाणा ( माया कस । ईणं) માયા કષાય वाणा (लोहकसाईं) बोल उषाय वाजा (अकसाईगं य) भने अष्टुषायोभां (कयरे कयरेहिंतो ) अणु अनाथी ( अप्पा वा बहुया वा तुल्ला व विसेसाहिया वा) मप, धा, तुझ्य अगर विशेषाधि४ छे ?
(गोयमा) हे गौतम । ( सव्वत्थोवा जीवा अकसाई) मधाथी गोछा ● भाषायी छे ( माणकसाई अनंतगुणा ) भान उषायवाणी अनन्तगणा छे (कोह कसाई विसेस।हिया) ङोध उषायवाजा विशेषाधि! छे (माया कसाई विसेसाहिया) भाया उपाय वाणा विशेषाधि छे (लोहकसाई विसेसाहिया) बाल उपाय वाजा विशेषाधि४ छे (सकसाई विसेसाहिया) सम्पायी व विशेषाधि! छे.
હવે કપાયાની અપેક્ષાએ જીવાનુ અપહ્ત્વ મહુત્વ કહે છે