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________________ प्रशापनासूत्र ___टीका-प्रथमे पदे पृथिवीकायिकादयः प्ररूपिताः, द्वितीये पदे च तएव पृथिवीकायिकादयः स्वस्थानादिना प्ररूपिताः अथ तृतीये पदे तेपामेव पृथिवीकायिकादि जीवाना मल्पहुत्वादिकम् प्ररूपयितुं सप्तविंशतिद्वारसंग्राहकगाथाद्वयमाह-'दिसि' प्रथमं द्विरद्वारम् १, 'गइ' द्वितीयं गतिद्वारम् २, 'इंदिय' तृतीयम् इन्द्रियद्वारम् ३, 'काए' चतुर्थ कायद्वारम्४, 'जोए' पञ्चमम् योगद्वारम्५, 'वेए' पष्ठं वेदद्वारम्६, 'कसाय' सप्तमं कपायद्वारम्७, 'लेस्सा य' अष्टमं लेश्याद्वारम्८, 'सम्मत्त' नवमं सम्यक्त्वद्वारम्९, 'नाण' दशमं ज्ञानद्वारम्१०, 'दसण' एकादशं दर्शनद्वारम् ११, 'संजय' द्वादशं संयतद्वारम् १२, 'उवओग' त्रयोदशम् उपयोगद्वारम् १३, 'आहारे' चतुर्दशम् आहारद्वारम्१४, 'भासग' पञ्चदर्श भापकद्वारम्१५- परित्ता' पोडशं परीतद्वारम् १६, परीता प्रत्येकशरीरिणः शुक्लपाक्षिकाश्च तद् द्वारम् 'पज्जत्त' सप्तदशं पर्याप्तद्वारम् १७, 'मुहुम' अष्टादशं सूक्ष्मद्वारम् १८, 'सन्ती' एकोनविंशं संज्ञिद्वारम् १९, "भव' विगं' भवसिद्धिकजीव (य) तथा (खित्त) क्षेत्र (बंधे) बन्ध (पुग्गल) पुद्गल (महादंडए) महादण्डक (चेव) और टीकार्थ-प्रथम पद में पृथिवीकाय आदि जीवों की तथा द्वितीय पद में उनके स्थानों की निरूपणा की गई। प्रस्तुत तीसरे पद में उन्हीं पृथिवीकाय आदि जीवों के अल्पवहुत्व की प्ररूपणा करने के लिए दो गाथाओं में सत्ताईस दारों का नाम निर्देश करते हैं-वे डार इस प्रकार हैं-(१) दिगद्वार (२) गतिद्वार (३) इन्द्रियहार (४) कायद्वार (५) योगद्वार (६) वेदवार (७) कषायद्वार (८) लेश्याहार (९) सम्यक्त्वद्वार (१०) ज्ञानबार (११) दर्शनहार (१२) संयतद्वार (१३) उपयोगद्वार (१४) आहारहार (१५) भाषद्वार (१६) परीत अर्थात् प्रत्येक शरीर और शुक्लपाक्षिकद्वार (१७) पर्याप्तद्वार (१८) सूक्ष्मद्वार (१९) सही (भव) ११ (अस्थिए) मस्ति४ (चरिमे) य२म (जीवे) ७१ (य) तथा (खित्त) क्षेत्र (बंधे) गन्ध (पुग्गल) पुइगर (महादंडए) भ६४ (चेव) अने. ટીકાર્થ–પહેલા પદમાં પૃથ્વીકાય આદિ છવાની તથા બીજા પદમાં અનેક સ્થાનેની નિરૂપણ કરાઈ. પ્રસ્તુત ત્રીજા પદમાં તેજ પૃથ્વીકાય આદિ વોનો અ૫ મહત્વની પ્રરૂપણ કરવાને માટે બે ગાથાઓમાં સત્યાવીસ દ્વારા ના નામ નિર્દેશ કરે છે. તે દ્વારે આ રીતે છે. (१) हिवा२ (२) गतिहार (3) धन्द्रियद्वार (४) अया२ (५) योगदार (6) वार (७) ४ायदा२ (८) सश्यादा२ () सभ्यत्वदार (११) शनिवार (१२) संयतदा२ (१३) ७५यादा२ (१४) २माहाशा२ (१५) सापार (१६)
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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