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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.८ सूक्ष्मवादरजीवाल्पवहुत्वम् १६७ राशिप्रमाणसात् तेषामसंख्येयगुणत्वमवसेयम्, तदपेक्षया 'सुहुम पुढवीकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया' सूक्ष्म पृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः किश्चिदधिका भवन्ति, तदपेक्षया-'सुहुम आउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया' सूक्ष्मा'कायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिका भवन्ति तदपेक्षया-'सुहुम वाउकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया' सूक्ष्म वायुकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिका भवन्ति, प्रागुक्तयुक्तेः, सूक्ष्म पर्याप्तक वायुकायिकेभ्यः "सुहुम निगोया पन्जत्तया असंखेजगुणा' सूक्ष्म निगोदाः पर्याप्तकाः असंख्ये यगुणा भवन्ति, तेपामत्यधिकतया प्रतिगोलक सद्भावात्, तेभ्योऽपि 'वायर वपस्सइकाइया पज्जत्तया अणंतगुणा' चादर वनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः अनन्तगुणा भवन्ति तेषां प्रतिबारेकैक निगोद मनन्तानां सद्भावात्, तेभ्योऽपि 'बायर पज्जत्तया विसेसाहिया' समुच्चय वादरपर्याप्तकाः विशेषाधिका भवन्ति, पर्याप्तकवादरतेजाकायिकादीनामपि तत्र समावेशात, तेभ्योऽपि 'सुहुम वणरसइकाइया पज्जत्तया असंखेज गुणा' सूक्ष्म वनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणा भवन्ति, वादर निगोद पर्याप्तकापेक्षया सक्ष्म निगोद पर्याप्तकानामसंख्येयगुणत्वात् तेभ्योऽपि 'सुकुम पजत्तया यिक पर्याप्तकों की अपेक्षा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनकी अपेक्षा सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनकी अपेक्षा सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनकी अपेक्षा सूक्ष्म निगोद के पर्याप्त असंख्यातगुणा अधिक हैं, उनकी अपेक्षा पादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक अनन्त गुणा अधिक हैं, क्योंकि वे प्रत्येक बादर निगोद में अनन्त-अनन्त जीव होते हैं, दादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तों की अपेक्षा समुच्चय वादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि उनमें बादर तेजस्कायिक आदि का भी समावेश है बादर पर्याप्तों की अपेक्षा सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्य गुणा हैं, क्योंकि बादर निगोद के पर्याप्तकों की अपेक्षा सूक्ष्म निगोद के पर्याધિક છે, તેમની અપેક્ષાએ સૂમ અષ્કાયિક પર્યાપ્ત વિશેષાધિક છે, તેમની અપેક્ષાએ સૂમ વાયુકાયિક પર્યાપ્ત વિશેષાધિક છે, તેમની અપેક્ષાએ નિગોદના પર્યાપ્તક અસંખ્યાતગણ અધિક છે, તેમની અપેક્ષાએ બાદર વનસ્પતિકાયિક પર્યાપ્ત અનન્તગણ અધિક છે, કેમકે તેઓ પ્રત્યેક બાદર નિગોદમાં અનન્તઅનન્ત થાય છે, બાદર વનસ્પતિકાયિક પર્યાપ્તની અપેક્ષાએ સમુચ્ચય બાદર પર્યાપ્ત વિશેષાધિક છે, કેમકે તેઓમાં બાર તેજસ્કાયિક આદિને પણ સમાવેશ છે. બાદર પર્યાપ્તોની અપેક્ષાએ સૃહમ વનસ્પતિકાયિક પર્યાપ્ત અસ ખ્યાત ગણુ છે, કેમકે બાદર નિગોદના પર્યાપ્તકની અપેક્ષાએ સૂમ નિગોદના પર્યાપ્તક . 3M
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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