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________________ १५६ hayari तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम | सर्वस्तोकाः चादर तेजः कायिकपर्याप्तकाः; वादरत्रसकायिकाः पयाप्तकाः असंख्येयगुगाः, प्रत्येकशरीरवादनम्पनिकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः नादरनिगोदाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरथिवीकायिकाः पर्याप्तका असंख्येयगुणाः, बादराकाविताः पर्याप्तकाः असंख्येयगुगाः, वादवायुकायिकाः पर्यायः असंख्येयगुणाः, सूक्ष्मतेजःकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुगाः, सुक्ष्मपृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः विशेषाधिकाः क्ष्मासकों में (कवरे कमरेहिनो) कौन किससे ( अप्पा वा बहुया या तुला वा विसेसाहिया वा ?) अन्य, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? " (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा यावर ते काया पज्जत्तया) सब से कम बादर तेजस्काय के पर्यातक हैं (वायर तसकाइया पज्जतया असंखेज्जगुणा) शदर मकाय के पर्यानक असंख्यातगुणा है (पत्तेयसरीर वायरचणस्सइकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्यातगुणा है (वायरनिगोया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) चादर निगोद के पर्याप्तक असंख्यानगुणा हैं (वायर पुढवीकाया पज्जत्तया अखेज्जगुणा ) बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (नायर आउकाड्या पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) वादर अकाविक पर्यातक असंख्यातगुणा है (बायरवाकाया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बाहर वालुकाय के पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (सुहुमते उकाया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (मुहुन पुढवीकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया) हितो) अ अनाथी ( अप्पा वा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया वा ? ) मन्थ, धातु, તુલ્ય અગર વિશેષાધિક છે ? (गोयमा !) गौतम ! (सव्वत्योवा बारकाइचा पत्ता) मधाथी गोछा माहर तेनस्टायना पर्या छे (वायरतमकाइया पज्जत्तया असंखेनगुणा) हरभडायना पर्याप्त असण्यातला छे (पत्तेयसरीखा चरवणम्स इकाइया पज्ञत्तया असंखेजगुणा ) प्रत्ये शरीर माटर वनस्पतियिः पर्याप्त असंख्यात छे (वायरनिगोया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) गाढर निगोहना पर्यास ध्याता हे (वायरपुढवीकाइया पज्जत्तया अनखेज्जगुणा ) बाहर पृथ्वी अयना पर्याप्त गम ज्यात गधे (वायरआउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) महर माथि पर्याप्त सौंच्यातगए। छे (वायरवा उकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) बाहर वायुायि पर्याप्त असं ध्यातगाया छे (सुहुमते उकाइया पज्जत्तया असंखे जगुणा) सूक्ष्मतेरायिङ पर्याप्त असंख्यात छे (मुहुमपुढनीकाइया पज्जत्तया विसेसाहिया) सूक्ष्म
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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