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________________ - 'प्रज्ञापनासूत्रे १३० 1 ख्येयगुणाः वादरनिगोदाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, वादरपृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, वादराप्फायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, ... वादरवायुकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, वादरतेजः कायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिका अपर्याप्तकाः 'असंख्ये - यगुणाः वादरनिगोदाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः बादरपृथिवीकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः' वादराकायिकाः अपर्याप्तका असंख्येयगुणाः वादरवायुकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, वादरवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः असंखेज्जगुणा) प्रत्येक शरीर वादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (बायर निगोया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर निगोद + के पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (वायरपुढचिकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (वायरआउकाइया पज्जन्तया असंखेज्जगुणा ) वादर अकाय के पर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (वायर वाउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (वायरते उकाइया अपज्जतया असंखेज्जगुणा ) बादर तेजस्काय के अपर्याप्त असंख्यातगुणा है । ' (पत्तेयसरीर ल्यायर चणस्सकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुण) प्रत्येक शरीर कादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (वायरनिगोया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) बादर निगोद के अपर्याप्त ...असंख्यातगुणा हैं (वायर पुढचिकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) # बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (वायर आउकाड्या • अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) बादर अष्कायिक के अपर्याप्त असंख्य 'पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) प्रत्येक शरीर बाहर वनस्पतियना पर्याप्त संज्यात गछे (वायरनिगोया पञ्चत्तया असखेज्जगुणा) हर निगोहना पर्याप्त असज्यातला छे (वायर पुढवीकाइया पज्जत्तया असंखे जगुणा जाहर पृथ्वी अयना पर्याप्त असण्यातला छे, (वायर आउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) माहर - शायना पर्याप्त अस ज्यातगा छे, (वायर ना उकाइया पज्जत्तथा असंखेज्जगुणा ) माहर वायु पर्याप्त असंख्यात छे (बयर उकाइया अपज्जत्तया असंखे जगुणा) बाहर ते सायना अपर्याप्त असण्यातगुणा छे (पत्तेयसरीर वायर वणस्सइकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणां) प्रत्येक शरीर बाहर वनस्पति अयि अपर्याप्त असण्यातगषु। छे (वायरनिगोया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) गाहरनिगोहना अपर्याप्त, अभौंण्यातग । छे (बायरपुढनिकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) ---માદર-પૃથ્વીકાયિક અપર્યાપ્ત, અસ ખ્યાતગણા (वायर आउकाइया अपज्जेत्तया ܙ ܕܝܢ -
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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