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________________ प्रज्ञापनासूत्रे '१२८ 'विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः वादरनिगोदाः पर्याप्तकाः वादर निगोंदा : अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, एतेषां खलु वदन्त ! वादरसकादिकानां पर्या प्ता पर्याप्तकानां कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका था, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः वादरत्ररुकायिकाः पर्याह्नकाः, बादरहरुकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः एतेषां खलु भदन्त ! शवगणां वादरपृथिवीका असंख्यात गुणा है । (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (वायर निगोदाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) वादर निगोदकाय के पर्याप्तकों और अपर्याप्तों में (art करेहितो ) कौन किससे (अप्पा वाचया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तय या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सम्वत्थोग शयररिगोया पज्जत्तया वायर निगोया अपज्जन्तया असंखेज्ज्रणा) सबसे अल्प बादरनिगोद के पर्याप्त है, वादर निगोद के अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (वायरतसकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) चादर 'काय के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में (कमरे कमरे हितो) कौन 'किससे (अप्पा वा बहुया वा' तुल्ला वा विसे साहित्या वा ?) अल्पं, 'बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोमा) हे गौतम! (सव्वत्थोवा बायरतसकाइया पज्जन्त्ता) सबसे कम बादर सकाय के पर्याप्त हैं (बायरतसकाइया अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ) बादर त्रसकाय के अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं । (एएसि ण भते !) भगवन् । आा (वायरनिगोदाणं पज्जत्तापजत्ताण) मायरनिगोह डायना पर्यास। मने अपर्याप्रेम (कायरे कयरेटिनो) ! अनाथी ( अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा बिसेसाहिया वा १) सहय, धा, तुझ्य अगर विशेषाधिः छे ? ( गोयमा । ) हे गीतभ | ( ( सव्वत्थोवा वावर निगोया पज्जतया ) अधाथी ओछा जाहर निगोहना पर्याप्त छे (वायर निगोया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) બાદર નિગેાદના અપર્યાપ્ત અસંખ્યાતગુણા છે, (एएसि ण भते ।) लगवन् मा ( वायरत तसकाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ता ण) माहरत्र सायना पर्यास भने ' अर्थर्यातप्रेमां (कमरे कयरेहिंतो ) अए अनाथी (आपा वा बहुया वा तुल्ला वा बिसेमाहिया ग) संहय, अधिक, 'तुझ्य मैथवा विशेषाधि छे ? (गोयमा 1) हे गौतम! (सव्वत्थोवा वायर तसकाइया पज्जत्ता) मधाथी माछा माÈर त्रस डायना पर्याप्त छे (वायर तसकाइयो अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) માદર ત્રસકાયના અપર્યંત અસંખ્યાતગણા છે.
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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