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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ६ सू.१४ असुरकुमारायुहर्तनानिरूपणम् १११३ धन्ते, तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते, मनुष्येषु उपपद्यन्ते नो देवेषु उपपद्यन्ते । यदा तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते-किम् एकेन्द्रियेषु उपपद्यन्ते ? यावत्-पञ्चेन्द्रियेपु तिर्यग्योनिकेतु उपपद्यन्ते ? गौतम ! एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकपु उपपद्यन्ते नो द्वीन्द्रियेषु यावत्-नो चतुरिन्द्रियेषु उपपद्यन्ते, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते, यदा एकेन्द्रियेषु उग्रपद्यन्ते, किं पृथिवीकायिकैकेन्द्रियेषु यावत्-वनस्पतिकायिकैकेन्द्रिउववज्जति ? क्या नारकों में यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जति) गौतम ! नारकों में उत्पन्न नहीं होते (तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति) तिर्यचों में उत्पन्न होते हैं (मणुस्सेसु उव. वज्जति) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं (णो देवेसु उववज्जति) देवों में उत्पन्न कहीं होते ____ (जइ तिरिक्खजोणिएतु उववज्जति) यदि तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं (किं एगिदिएसु उववज्जति) क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं (जाव) यावत् पंचिंदियलिरिक्खजोणिएसु उववज्जति) पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (एनिंदियतिरिक्खजोणिएसु) एकेन्द्रिय तिर्यचों में (उववज्जंति) उत्पन्न होते हैं (नो बेईदिएसु जाव नो चउरिदिएलु उववज्जति) द्वीन्द्रियों में यावत् चौइन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते (पंचेदियतिरिक्खजोणिएलु उववज्जंति) पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। ____ (जइ एगिदिएस्तु उववजति) यदि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं (किं ध्या सत्पन्न थाय छे. (कि नेरइएसु जाव देवेसु उववज्जति ?) शुना२मा यावत् हेवामा उत्पन्न थाय छ १ (गोयमा | नो नेरइएसु उववज्जति) गौतम । नामां Gurन नथी यता (तिरिक्खजोणिएसु उववजनि) तिय याम जपन्न थाय छे. (मणुस्सेसु उववज्जंति) मनुध्यामा अत्यन्त थाय छे. (णों देवेसु उत्रवज्जंति) हेमां ઉત્પન નથી થતા. (जइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति) यहि तिय यामा अत्यन्न थाय छे. (किं एगिदिएसु उववज्जति) शुभेन्द्रियमा उत्पन्न थाय छे ? (जाव) यावत् (पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजंति) पयन्द्रिय तिययामा अत्यन्न थाय छ ? (गोयमा !) के गौतम । (एगिदियतिरिक्खजोणिएसु) मेन्द्रिय तिय यामा (उववउजंति) त्पन्न थाय छे. (नो वेइंदिएसु जाव नो चरिदिएसु उववज्जंति) (दीन्द्रियामा यावत् यतुरिन्द्रियामा ५न्न नथी था. (पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति) पयन्द्रिय तिय यामा उत्पन्न थाय छे. (जइ एगिदिएसु उववज्जति) यहि गेन्द्रियामा ५-1 थाय छे. (कि प्र० १४०
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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