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शापनासूत्र केषु उपपद्यन्ते, मनुष्येषु उपपद्यन्ते, नो देवेषु उपपद्यन्ते, यदा तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते किम् एकेन्द्रिथेषु उपपद्यन्ते यावत् पञ्चन्द्रियेषु तिर्यग्योनिकेषु उपपधन्ते ? गौतम ! नो एकेन्द्रियेषु यावत् नो चतुरिन्द्रियेषु उपपद्यन्ते, एवं येभ्य उपपातो भाणितस्तेषु उद्वर्तनाऽपि भणितव्या, नवरं, संमूच्छिमेषु न उपपद्यन्ते, एवं सर्व पृथिवीपु भणितव्यं नवरम्-अधः सप्तम्या मनुष्येषु न उपपद्यन्ते । ____टीका-अथ नैरयिकाणासुद्वर्तना नामक पष्ठ द्वार वक्तव्यतां प्ररूपयितु माह(मणुलेसु उववज्जंति) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं (नो देवेतु उववज्जंति) देवों में नहीं उत्पन्न होते है (जइ तिरिक्खजोणिएस्तु उववज्जति) यदि तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं (किं एगिदिएलु उपवज्जति) क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? (जाव पचिंदिएउ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति ?) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्थचों में उत्पन्न होते हैं ?
(गोयमा) हे गौतम ! (नो एगिदिए जाच नो चरिदिएसु उव. वज्जंति) एकेन्द्रियों में यावत् चौइन्द्रियों में नहीं उत्पन्न होते हैं, एवं इस प्रकार (जेहिंतो उववाओ भणिओ) जिनसे उपपात कहा है (तेसु उच्चटणा वि भाणियवा) उनमें उद्वर्तना भी कहनी चाहिए (नवरं) विशेष (समुच्छिमेसु न उववज्जति) संसूछिमों में नहीं उत्पन्न होते (एवं सब्वपुढवीसु भाणियव्य) ऐसा समस्त पृथिवियों में कहना चाहिए (नवरं) विशेष (अहेसत्तमाओ) सातवीं नरकभूमि से (मणुस्सेसु) मनुष्यों में (ण उववज्जति) नहीं उत्पन्न होते,
टीकार्थ-अव नारक जीवों की उतना की वक्तव्यता कही उववज्जति ) मनुष्यो। सन्न थाय छे. (नो देवेसु उववज्जति) हेवामा नथी त्पन्न यता. ___ (जइ तिरिक्खजोणिएसु उववजंति) यहि तिययामा उत्पन्न थाय छे. (किं एगिदिएसु उववज्जंति) शुमेन्द्रियामा भन्न थाय छे. (जाव पंचिदिएसु तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति ?) यावत् पश्यन्द्रिय तिय यामां यन्न थाय छे ?
(गोयमा ) हे गौतम (नो एगिदिएसु जाव नो चउरिदिएसु उववज्जंति) येन्द्रियोभा यावत् यतुरिन्द्रियामा नथी उत्पन्न यता (एव) अशत (जेहितो उववाओ भणिओ) रेमनाथी ५पात ४ा छे. (तेसु उव्वट्ठणावि भाणियब्वा) तेमनाथी
पर्तना पए ती मध्ये (नवर) विशेष (समुच्छिमेसु न उववजंति) स भूछभामा नयी पन्न थपा (एवं सव्व पुढविसु भाणियव्यं) मम समस्त पृथ्वीयामा ४ लेने. (नवरं) विशेष (अहेसत्तमाओ) सातभा पृथ्वीना न२४ भूमिमां (मणुस्सेसु) मनुष्योभा (ण उववज्जंति) नथी उत्पन्न यता.
ટીકાર્થ હવે નારક જીવની ઉવનાની વક્તવ્યતા કહેવાય છે. અર્થાત
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