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________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद ६ सू.१२ वैमानिकदेवोपपातनिरूपणम् संमूच्छिम मनुष्येभ्यो गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्यः उपपद्यन्ते ? गौतम ! गर्भव्यु. स्क्रान्तिकमनुष्यभ्यो नो संमूच्छिममनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, यदा गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किम् कर्मभूमिगेभ्यः, अकर्मभूमिगेभ्यः, अन्तींपगेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! नो अकर्मभूमिगेभ्यो नो अन्तद्वीपगेभ्य उपपद्यन्ते, कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, यदा कर्म भूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किं संख्येयवर्षीयुष्भ्यः , असंख्येयवर्पायुष्केभ्यः उपप (जइ मणुस्सहिंतो उववजाति) यदि मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं समुच्छिममणुस्सेहितो) क्या संमूर्छिम मनुष्यों से ? (गम्भवक्कतिय. मणुस्सेहिंतो उववज ति?) या गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? (गोयमा! गम्भवक्कतियमणुस्सेहितो, नो संमूच्छिममणुस्सेहितो उववज्जति) गौतम ! गर्भज णनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, संमृछिम मनुष्यों से नहीं ___(जइ गम्भवक्कैतियमणुस्सेहितो उक्वज्जति) यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं कम्प्रभूमिगेहितो अकस्मभूमिगेहिंतो, अंतरदीवगेहिंतो उववज्जति?) क्या कर्मभूभिजों से अकर्मभूमिजों से या अन्तरद्वीपजों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा! नो अकम्मभूमिगेहितोणो अंतरदीवगेहिंतो उववज्जति) गौतम ! अकर्मभूमिजों से नहीं, अंतर द्वीपजों से भी नहीं उत्पन्न होते (कम्मभूमिगम्भवतियमणुस्सेहितो उववज्जति) कर्मभूमि के गर्भजमनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (जइ कम्मभूमगगम्भवक्कंलियमसेहितो उववज्जति) यदि कर्मछ. (णो देवेहितो उववज्जंति) हेवाथी उत्पन्न नयी थता. (जइ मणुरसेहिंतो उबवज्जंति) यहि मनुष्याथी उत्पन्न थाय ,, तो शु (समुच्छिममणुस्सेाहतो) स भूमि भनुप्याथी (गन्भवतिय मणुस्सेहितो?) या TH मनुष्याथी ? (गोयमा । गम्भवतियमणुस्सेहितो, नो समुच्छिममणुस्से हितो उबबज्जति ) गौतम ! ४ भनुष्याशी उत्पन्न थय छ, स भूमि મનુષ્યથી નથી ઉત્પન્ન થતા. (जइ गम्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जंति) यहि सम भनुप्याथी पन्न थाय छ. (किं कम्मभूमिगेहितो, अकम्मभूमिगेहितो, अंतरदीवगेहितो उबवज्जति ?) शुभ मूभिन्नथी, मम भूभिन्नथी मन्तीपथी पन्न याय छे ? (गोयमा ! नो अकम्मभूमिगेहितो, णो अंतरदीवगेहिंतो उबवज्ज ति ?) गौतम । मम अभियानडा, मन्तीपायी ५ संपन्न नयी यता (कम्मभूमिगगम्भव क्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववज्जंति) भभूभिना समनुप्याथी पनि थाय छे. (जइ कम्मभूमिगगभवकांतियमणूसेहिं तो उअयजति) यहि म मिना
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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