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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ६ स.११ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकायुपपातनि० १०८ मनुष्येभ्यो देवेभ्य उपपद्यन्ते ? येभ्योऽसुरकुमारास्तेभ्यो भणितव्याः, ज्योतिष्काः खल भदन्त ! देवाः केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! एवञ्चेव, नवरम् संमूच्छिमसं. ख्येयवर्षायुष्कखेचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकवर्जेभ्यो ऽन्तरद्वीपमनुष्यवर्जेभ्यः उपपा. तयितव्याः ॥ सू० ११॥ टीका-अथ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकादीनामुपपातवक्तव्यता प्ररूपयितुमाह-चिं ' (वाणमंतरदेवा णं भंते ! कओहिंतो ऊववति ?) भगवन् ! वानव्यन्तर देव किनसे उत्पन्न होते हैं ? (किं नेरइएहितो) क्या नार कों से ? (तिरिक्खजोणिएहितो) तिर्यचों से (मणुस्सहिंतो) मनुष्यों से ? (देवहितो) देवों से ? (उववज्जति) उत्पन्न होते हैं ? गोयमा.!) हे गौतम ! (जेहितो असुरकुमारा तेहिंतो भणियव्या) जिनसे असुरकुमार उत्पन्न होते हैं उनसे चानव्यन्तरों का उपपात कहना चाहिए __ (जोइसिया णं भंते ! देवा कओहिंतो उववज्जति ?) हे भगवन् ! ज्योतिष्क देव किनसे उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (एवं चेव) (इसीप्रकार (नवरं) विशेष समुच्छिम असंखिज्जवासाउयखयर पंचिंदियरिक्खजोणियवज्जेहिंतो) संमूर्छिम असंख्यात वर्ष की आयु वाले खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों को छोड कर (अतरदीचमणुस्सवज्जेहिंतो) अन्तरद्वीपों के मनुष्यों को छोड कर (उववज्जावेयव्वा) उत्पन्न होना कहना चाहिए - टीकार्थ-अब पंचेन्द्रिय तिर्यचो आदि के उपपात की वक्तव्यता . (वाणमंतर देवाणं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति ?) मावन् ! वानव्य तर हेवनाथी उत्पन्न थाय छ ? (किं नेरइएहितो) शुनाथी (तिरिक्खजोणिए हितो) तिय याथी (मणुस्सेहितो) मनुष्याथी (देवेहितो) हेयी (उववज्जति) उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा !) गीतम । (जेहिंतो असुरकुमारा तेहिंतो भाणियब्वा) જેમનાથી અસુરકુમાર ઉત્પન્ન થાય છે, તેમનાથી વાયત ઉપપાત કહેવું જોઈએ (जोइसियाणं भंते : देवा कओहितो उववज्जंति ?) डे मन् ! स्याति ३१ जनाथी उत्पन्न थाय छ १ (गोरमा !) 3 गीतम! (एवं चेव) से प्रारे (नवरं) विशेष (समुच्छिम , असंखिज्जवासाउयखयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिय. वज्जेहितो) स भूमि २१सभ्यात पनी आयुपा मेयर पयन्द्रिय तिय:योना सिपाय (अंतरदीव मणुम्सवज्जेहि तो) मन्त२ द्वापान मनुष्याने त्यने (उववज्जावयव्वा) ५५ात ४ नये. ટીકાઈન્ડવે પચેન્દ્રિય તિર્યએ વિગેરે ઉપપતની વક્તવ્યતાની પ્રરૂ१० १३६
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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