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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ६ सू.११ पञ्चन्द्रियतिय योनिकायुपपातनि० १०७६ केभ्य उपपद्यन्ते ? यावत् देवेभ्य उपपद्यन्ते? गौतम ! नरयिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यावत्-देवेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदा नरयिकेभ्य उपपद्यन्ते कि रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं शर्कराप्रभापृथिवीनरयिकेभ्य उपपद्यन्ते ? किं वालकाप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः पङ्कप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः, श्रमप्रभापृथिवीनरयिकेभ्यः तमप्रभापृथिवीनरयिकेभ्यः अधःसप्तमपृथिवीनैरयिकेश्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्योऽपि यावत्-तमःप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते से उत्पन्न होते हैं ? (जाव) यावत् (देवेहितो उववज्जति ?) देवों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नेरइएहितो वि उववज्जति) नारकों से भी उत्पन्न होते हैं (जाव) यावत (देवेहितों वि उवव. जंति) देवों से भी उत्पन्न होते हैं (जइ नेरइएहितो उदबज्जति) यदि नारकों से उत्पन्न होते हैं (किं रयणप्पभा पुढचिनेर एहिंतो उचव जंति) क्या रत्नप्रभा पृथिवीके नारकों से उत्पन्न होते हैं ? (किं सक्करप्पभा पुढवि नेरइएहितो उवबज्जति ?) क्या शकरा प्रथा पृथिवी के नारकों से उत्पन्न होते हैं ? (किं वालुयप्पभा पुढविनेरइएहितो) क्या वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों से (पंकप्पभापुढवीनेरइएहितो) पंकप्रभा पृथ्वी के नारकों से (धूमप्पभापुढविनेरइएहितो) धृमप्रभा पृथिवी के नारकों से (तमप्पापुढविनेरहएहितो) तमाप्रभा पृथिवी के नारकों से (अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो) अधःसप्तमी पृथिवी के नारको से (उववज्जति) उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (रयणप्पभापुढविनेरइएहितो विजावतमा पुढविनेरइएहितो वि उववति Gurन थाय छ १ (नेदइएहिं तो उबवज्जति) शुनाथी उत्पन्न थाय छ ? (जाव) यावत् (देवेहिं तो उववज्जति) वाथी त्पन्न थाय छ ? (गोयमा ) 3 उ गौतम । (नेरइएहिता उववज्जति) नारथी ५५ अत्यन्न थाय छ ? (जाव) यावत् (देवेहिं तो वि उववज्जति) होवथी ५y G4-1 थाय छे. (जइ नरेइएहिंतो उव्वज्जति) यहि नाथी सत्पन्न थाय छ, (किं रयणपमा पुडवि नेरहएहिंतो उववज्जति ?) शुत्नप्रसाथ्वीन नारथी पन्त थाय (किं सकरप्पभा पुढविनेरइएहिंतो उववज्जति ?) शुशराममा पृथ्वीना नारधी ५नयाय (किं वालुयप्पभापुढवि नेरइएहितो? शुवाप्रमाथीना नारोधी (पकप्पभा पुढवि नेरएहितो) ५४मा पृथ्वीना नाथी (धूमप्पभा पुढवि नेर. इएहितो) धूमप्रमा पृथ्वीन नाथी (तमप्पभा पुढविनेरगडहिंनो) तम प्रय पृथ्वीन नारथी (अहे सत्तमा पुढवि नेरईएहितो) १५: सातमी वीना माथी (उववज्जति) पन थाय छ १ (गोयमा !) 3 गौतम । (रयणप्पभा
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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