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________________ १७७८ प्रापना भ्योऽपि उपपद्यन्ते, यावत् पञ्चन्द्रियेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदा एकेन्द्रियेभ्य उपपद्यन्ते, किं पृथिकीकायिकेभ्य उपपद्यन्ते ? एवं यथा पृथिवीकायिकानामुपपातो भणितस्तथैव एतेपामपि भणितव्यः, नवरं देवेभ्यो यावत् सहस्रारकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, नो आनतकल्पोपगवैमानिकदेवेभ्यो यावत्अच्युतेभ्यो पि उपपद्यन्ते, मतुप्याः खलु भदन्त ! केभ्य उपपद्यन्ते, किं नैरयिहोते हैं (जाव पंचिदिएहितो उववज्जति) यावत् पंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (एगिदिएहितो वि उववति जाव पंचिंदिएहितो वि उवचज ति) एकेन्द्रियों से भी ज्त्पन्न होते हैं यावत् पंचेन्द्रियों से भी उत्पन्न होते हैं (जइ एगिदिहिंतो उववज्जंति) यदि एकोन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं (किं पुढविकाइपहितो उववज्जति ?) क्या पृथ्वीकार्थिकों से उत्पन्न होते हैं ? (एवं) इसी प्रकार (जहा) जैसा (पुढविकाइयाणं उवचाओ मणिओ) पृथ्वीकायिकों का उपपात कहा है (तहेव) वैसा ही (एएसिपि भाणियचो) उनका भी कहना चाहिए (नवरं) विशेष (देवेहितो) देवों से (जाव) यावत् (सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो वि उववज्जति) सहस्रार कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से भी उत्पन्न होते हैं (नो आणयकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतोजाव अच्चुएहिंतो उववज्जति) आनतकल्प के वैमानिक देवों से यावत् अच्युत कल्प के देवों से नहीं उत्पन्न होते (सणुस्सा णं संते ? कओहिंतो उववज्जति ?) भगवन ! मनुष्य किनसे उत्पन्न होते हैं ? (किं नेरइएहिंतो उववज्जति ?) क्या नारकों पंचि दिएहि तो उववज्जति) यावत् पयेन्द्रियोथी 64न्न थाय छ १ (गोयमः ! ॐ गौतम ! (एगिदिएहि तो वि उववज्जति जाव पंचिं दिएहि तो वि उववज्जति) એકેન્દ્રિયોથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે યાવત્ પંચેન્દ્રિથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે (जइ एगि दिपहिं तो उववज्जति) यहि मेन्द्रियाथी उत्पन्न थाय छ ( किंपुढवि काइएहिं तो उववज्ज ति ?) भुपृथ्वीयिरथी पन्त थाय छे. (एवं) मे शते (जहा) वा (पुढविकाइयाणं उववाओ भणिओ) पृथयिन। 8५५ात हो छ (तहेव) तभ०० (एएसिौप भाणियव्वो) तेमन। 8५५ ५५ पा न मे (नवर) विशेष (देवेहितो) हेवाथी (जाव) यावत् (सहस्सारकापोवगवेमाणियदेवेहितो वि उववज्ज ति) सरसार ४८या५पन्न वैभानि हेथी ५९ 64न्न थाय छे (नो आणयकप्पोवगवेमाणियदेवेहिं तो जाव अच्चुएहितो वि उववज्जति) मानत४६यना વિમાનિક દેથી યાવત્ અચુત કલ્પના દેથી નથી ઉત્પન્ન થતા (मणुस्साणं भंते : कओहितो उनवज्जति १) 3 शव ! मनुष्य हानायी
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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