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________________ C प्रज्ञापनासूत्रे कल्पोपगवैमानिकदेवेभ्य उपपद्यन्ते, नो कल्पातीत वैमानिनदेवेभ्य उपपद्यन्ते, यदा कल्पोपगवैमानिकदेवेभ्य उपपद्यन्ते, किं सौधर्मेभ्यो यावद् अच्युतेभ्य उपपद्यन्ते, गौतम 1 सौधर्मेशानेभ्य उपपद्यन्ते, नो सनत्कुमार यावद् अच्युतेभ्य उपपद्यन्ते, एवम् अप्कायिका अपि, एवं तेजोवायुकायिका अपि, नवरम् - देववर्जेभ्य उपपद्यन्ते, वनस्पतिकायिका यथा पृथित्रीकायिकाः द्वीन्द्रिया स्त्रीन्द्रिया तुरिन्द्रिया एते यथा तेजस्कायिका थिका देववर्जेभ्य भणितव्याः || १० | उचचज्जंति ?) या कल्पातीत वैमानिकदेवों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! कम्पोवगवेमाणिय देवेहितो उवववज्र्ज्जति) गौतम ! कल्वोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं ? (नो कप्पाइय देयाणिगदेवे हितो उववज्जंति) कल्पातीत वैमानिकदेवों से नहीं उत्पन्न होते । (जड़ कप्पोबगवेमाणिय देवहितो उववज्जति) यदि कल्पोपपन्न वैमानिकदेवों से उत्पन्न होते हैं (किं सोहम्मेहिंतो जाव अच्चुएहिलो उबवज्र्जति ?) क्या सौधर्म से यावत् अच्युत से उत्पन्न होते हैं ? (गोसा ! सोहम्मीसाणेहिंतो उववज्जति) गौतम ! सौधर्म एवं ईशान से उत्पन्न होते हैं । (नो सर्ण कुमार जाच अच्चुएर्हितो ) सनत्कुमार से लेकर अच्युत तक के विमानों से नहीं ( उववज्जति) उत्पन्न होते हैं । १०६२ ( एवं आकाइया चि) इसी प्रकार अष्कायिक भी ( एवं तेकाइया वि) इसी प्रकार तेजस्कायिक भी (नवरं देववज्जेहिंतो उववज्र्जति) विशेष यह कि देवों को छोड कर अन्यों से उत्पन्न होते हैं ? (वणस्सद काइया जहा पुढविकाइया) वनस्पतिकायिक पृथ्वीकायिकों के समान उत्पन्न थाय छे ? ( कषाय वैमाणियदेवेहिं तो उववज्ज ति ?) या यातीत वैभानि देवोथी उत्पन्न यायो ? ( गोयमा ! कपोवगवेनाणियदेवेहिंतो उ वज्ज ंति) हे गौतम । यन्न वैमानि देवोथी उत्पन्न थाय छे (नो कपा इयवेमाणियदेवेहि तो उववज्जति) हयातीत वैमानि देवोथी उत्पन्न नथी थता (जइ कप्पोगमाणियदेवेहिं तो उत्रवज्जति) यदि उयोपपन्न वैमानि देवोथी उत्पन्न थाय छे (किं सोहमेहिं तो जोव अच्चुएहिं तो उववज्ज ति) शु सौधर्भथी यावत् अभ्युतथी उत्पन्न थाय छे (गोयमा ! सोहम्मीसाणे हि तो उपवज्जति) हे गीतभ ! सौधर्भ तेभन ईशानथी उत्पन्न थाय छे (नो सणकुमारा जाव अच्चुएहिं तो ) सनभारथी मार लीने अभ्युत सुधीना विभानोथी नथी (उत्रचज्जति) त्पन्न थता ( गवं आउकाइया वि) ४ ते साय पशु ( एवं तेउकाइया वि) प्रारे ते स्थायि पशु (नवरं देववज्जे वज्जति) विशेष सेवा शिवाय अन्योथी उत्यन्न थाय छे (वणस्सइकाइया जहा पुढविकाइया) वनस्पति
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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