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________________ १०२६ प्रहापनाने गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्यासकेभ्य उपपद्यन्ने, यदि मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते किं संमूछिसमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! नो संमृच्छिममनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, गर्भव्युत्क्रान्तिकमतुप्येभ्य उपपद्यन्ते, यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुप्येभ्य उपपद्यन्ते कि कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, अकर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपयन्ते, अन्तरद्वीपगगर्भव्युअथवा अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पजत्तएहितो उववज्जति नो अपज्जत्तहिंतो उववज्जति) हे गौतम ! पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते। (जइ मणुरहितो उववज्जंति, कि संच्छिलमणुस्लेहिनो उवव. ज्जंति, गम्भवचक्रतियमणुस्सेहितो उववज्जति) यदि मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या संमृम्भिमनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज मनुप्यों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! नो लंमुच्छिममणुस्सेहितो उववज्जति) गोलम ! संसूर्छिम मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते (गम्भवक्वंतियमणुस्लेहिनो उववज्जति) गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। (जइ गभवनकतिग्रमणुस्सेहिंतो उवयन्जंति) यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। (कि कम्मभूमिगगम्भवतियनणुस्सेहितो उवव. उजंति) क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (अक म्मतृनिगमचक्रतियमणुस्सेहितो उववति) अकर्मभूमिज गर्भज વર્ષની આયુવાળા ગર્ભજ ખેચર પચેન્દ્રિય તિયાથી ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું પર્યાપ્તકેથી ઉત્પન્ન થાય છે અથવા અપર્યાપ્તકેથી ઉત્પન્ન થાય છે? (गोयमा ! पजत्तपहिंतो उववन्जंति, नो अपजत्तएहिंतो उबवजंति) 3 गौतम ! પર્યાપ્તથી ઉત્પન્ન થાય છે, અપર્યાપ્તકેથી ઉત્પન્ન નથી થતા (जड मणुम्मे हितो उववजंति, कि संमुच्छिममणुस्से हितो उववज्जंति, गम्भ. वत्तियमणुम्सेहितो उपवज्जति) यहि मनुष्योथी उत्पन्न थाय छ, त। शुस भूछिभ भनुप्याथी उत्पन्न थाय छ अथवा भनुध्याथी पनि थाय छ ? (गोयमा ! नो समुच्चिममणुस्सेहितो उववति) गौतम ! स भूमि मनुध्याथी उत्पन्न नथी थता (गन्यवक्कंतियमणुम्सेहिंतो उबवज्जति) ग. मनुष्याथी पन्ने थाय छे (जइ गम्भवदंतियमणुम्सेहिन्तो उववज्जंति) यहि सम भनुष्याथी उत्पन्न थाय छ (किं कम्मभूमिगगभवतियमणुम्सेहितो उववज्जति) शुभ भूमिका सलर मनुप्याथी उत्पन्न थाय छे? (अकम्मभूमिगगम्भवतियमनुरसेहितो स्व. वजति) ॥४म भूमि ग भनुष्याची उत्पन्न थाय छ ? (अंतरदीवगगम्भ
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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