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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ६ सू.९ उरपरिसादीनामेकसमयेनोपपातनि० १०२५ गौतम ! पर्याशकेश्य उपययन्ते, नो अपर्याप्तकेभ्यः उपपद्यन्ते, यदि पर्याप्त कगर्भव्युस्क्रान्तिकखेचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, कि संख्येयवर्पायुष्केभ्य उपपद्यन्ते? असंख्येयवांपुष्केभ्य उपपद्यन्ते? गौतम! संख्येयार्पायुष्केभ्य उपपद्यन्ते, नो असंख्येयवर्षायुकेल्य उपपद्यन्ते; यदि संख्येयवर्षायुष्कगर्भव्युत्क्रान्तिकखेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य उपपद्यन्ते कि पर्यातकभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते? से उत्पन्न होते हैं अथवा अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पज्जत्तरहितो उसयजति, लो अपजत्तपहिंतो उवधज्जति) हे गौतम ! पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तको ले नहीं उत्पन्न होते। ___ (जइ पज्जलगावमशक्कंलिय खयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति, कि संखेजवासाउएहितो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउएहितो उपज्जति ? ) यदि पर्याप्तक गर्भज खेचरपंचेन्द्रिय तिथंचों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यातवर्ष की आयुवालों से उत्पन्न होते हैं ! अथवा असंख्यातवर्ष की आयुवालों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा! संखिज्जवासाउएहितो उववज्जति, नो असंखिजवासाउएहितो उववज्जति) हे गौतम ! संख्यातवर्ष की आयु वालों से उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वालों से नहीं उत्पन्न होते। __(जइ संखिज्जवासाउय गम्भवक्कंतिय खयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, किं पज्जत्तहिंतो उववज्जति, अपज्जत्तएहिंतो उववज्जति ?) यदि संख्यातवर्ष की आयु वाले गर्भज खेचरपंचेंद्रिय तिर्थचों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं मथा माथी उत्पन्न थाय छ १ (गोयमा ! पज्जत्तएहि तो ऊववज्जति नो अपज्जत्तएहिं तो उयवज्जंति) पर्यायी उत्पन्न थाय छ, अपर्यायी ઉત્પન્ન નથી થતા. (जइ पज्जत्तगगम्भवकंतियखयरपंचि दियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, किं संखेज्जवासाउएहितो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति ?) यह પર્યાપ્તક ગર્ભજ પોચર પંચેન્દ્રિય તિર્યચેથી ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું સંખ્યાત વર્ષની આયુવાળાએથી ઉત્પન્ન થાય છે અથવા અસંખ્યાત વર્ષની આયુવાળાमेथी 64-1 थाय छ १ (गोयमा । (संखिजवासाउएहिं तो उववजंति, नो असंखिज्जवासाउएहिं तो उपवज्जति) 3 गौतम ! सध्यात नो मायुष्यवाणाथी ઉત્પન્ન થાય છે, અસંખ્યાત વર્ષની આયુવાળાથી નથી ઉત્પન્ન થતા (जइ संखिजवासाउयगन्भवतियखयरपंचि दियतिरिक्वजोणिएहिंतो उववजंति कि पज्जत्तगेहिं तो उवयज्जंति, अपजत्तएहिं तो उववति?) ने सभ्यात प्र० १२९
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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