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________________ . . . प्रॉपना त्रयो वा, उत्कृष्टन संख्येया वा असंख्येया वा, एवं त्रीन्द्रिया श्चतुरिन्द्रियाः, मंन्टिमपञ्चन्द्रियनियंग्योनिका गर्भव्युत्क्रान्तिक पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः समूछिममनुप्या वानव्यन्तरज्योतिप्क सौधर्मशान सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकमहाशुक्रवहमारकल्पदेवास्ते यथा नरयिकाः गर्नव्युत्क्रान्तिक मनुष्यानतप्राणतारणाच्युत ग्रेवेयकानुत्तरोपातिकावेत जयन्येन एको वा ही वा, त्रयो वा, उन्कृप्टेन संख्येया उपपद्यन्ते सिद्वाः खलु भदन्त ! एक समयेन कियन्तः सिध्यनिन ? गौतम ! जयन्येन एको बा, द्वौ बा, यो वा, उत्कृष्टेन अष्टशतम् । पगो वा दो वा तिन्नि वा) हे गौतम ! जयन्य एक, दो या तीन (उक्कोसेणं मखज्जा वा असंखेज्जा वा ?) उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात (एवं तहंदिया) इसी प्रकार त्रीन्द्रिय (चरिंदिया) चौहन्द्रिय (समुच्छिमपंचिंदियतिरिकग्वजोणिया) संमृळिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक (गम्भवतियपंचिंदियतिरिक्वजोगिया) गर्भज पंचेन्द्रिय तियेच (समुन्छिममणुस्मा) संस्कृमि मनुष्य (वाणमनर-जोइसिय-सोहम्मीमाणसणंकुमार माहिन्द बंभलोय लंतग महासुक्कसहस्सार कप्प. देवा ते जहा नेरया) दानव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म ईशान, मनत्कुमार, माहेन्द्र ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र एवं सहस्रार कल्प के देव नारको के समान) गम्भवतिय मणूस आणय पाणय आरण अच्चुय गेवेत अणुत्तरोत्रवाइया य) गर्भज मनुष्य, आनत प्राणत आरण अच्युन बन्पों के देव वेयक और अनुत्तरोपपातिक देव (पते जहणणं हो वा दोवा तिन्नि वा) ये जघन्य एक, दो या तीन (उस्कोसेणं संखिज्जा उववजनि) उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं निन्नि या) जीतम न्य , गार य (उकोसणं संखेज्जा वा अमग्वजावा ) Stre मध्यात अथवा मध्यात (एवं तेइंदिया) से प्रारे शानिय (चन्दिया) चतुरिन्द्रिय (मुन्छिम पंचिदियतिरिक्वजोगिया) भूमि ५यदितिय योनि (गम्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिया) गनर थे. यि ति य (मंमुन्छिममणुन्सा) भूमि मनुष्य (वाणमंतर-जोइसिय मोहम्मीमाणसणंफुमार माहिद-भलोय-लंग-महामुक-सहम्मार-ऋप्पंदवा ते जहा नग्या) वानव्यन्तः, त्यानि, सोयम, शान, सनमा२, भाडेन्द्र, બ્રહ્મલોક, લાના, મહાક, તેમજ સહજાર કપના દેવ નારકેના સમાન (गमवशानिय-मयम, आणय, पाणय, आरण, अच्चुय, गवेज्जग-अणुत्तराववाइयाय) in मनुष्य, मानत, प्रात, माण, अश्युतयना हेव, अवय४ ने नुत्त५५नि देव (एते जगणं इको बा, दो वा तिन्नि वा) मा यन्य , २, सानु (उकासेणं मंसिजा उरवज्जति) are यात euri
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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