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. . . . . प्रमापनास्त्रे श्रीणि विमानावासशतानि भवन्ति इत्याख्याम्, तानि खलु विमानानि सर्वरन्नमयानि अच्छानि श्लक्ष्णानि, मसणानि घृष्टानि मृष्टानि नीरजांसि निर्मलानि निष्पकानि, निष्कङ्कटच्छायानि. सप्रमाणि, सश्रीकाणि, सोयोतानि, प्रासादीयानि, दर्शनीयानि, अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि, तेषां विमानानाम् कल्पानाम् बहुमध्यदेशभागे पश्चारतंसकाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा अङ्कावतंसकाः स्फटिकावतंसको, रत्नावतंसको जातरूपावतंसकः मध्ये अत्र अच्युतायतंसकः ते खलु अवतंसकाः सर्वरस्नमयाः यावत् प्रतिरूपाः, अत्र खलु आरणाच्युतानाम् देवानां पर्याप्ताप्रताकारक (दरिसणिज्जा) दर्शनीय (अभिरूचा) अभिरूप (पडिस्वा) प्रतिरूप (तत्थ णं) यहां (आरणच्चुयाणं देवाणं तिणि विमाणावास सया भवतीति सक्खोय) आरण-अच्युत देवों के तीन सौ विमान हैं. ऐसा कहा है (ते णं विमाणा) वे विमान (सव्वरयणामया) सर्वरत्नमय (अच्छा) स्वच्छ (सहा) चिकने (लण्हो) कोमल (घट्ठा) घृष्ट (मट्ठा) मृष्ट (नीरया) रज रहित (निम्मला) निर्मल (निप्पंका) पंक रहित (निक्कंकंडच्छाया) निरावरण कान्ति वाले (सप्पभा) प्रभावान् (सस्सिरीया) सश्रीक (सउज्जोया) उद्योतयुक्त (पासादीया) प्रसन्नता कारक (दरिसणिज्जा) दर्शनीय (अभिरुवा) अभिरूप (पडिरूवा) प्रतिरूप (तेसि णं) उन (विमाणाणं) विमानों के (कप्पाणं) कल्पों के (बहुमज्झदेसभाए) बीचों बीच (पंच वडिसया) पांच अवतंसक (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अंकडिसए) अंकावतंसक (फलिहवडिसए) स्फटिकावतंसक (रयणवडिंसए) रत्नावतंसक (जायरूव(अभिरूवा) अभि३५ (पडिरूवा) प्रति३५ (एत्थणं) डि (आरणच्चुयाणं देवाणं तिण्णि विमाणावाससया भवतीति मक्खाय) मा२९१ मत्युत शोना से विमान त, म घुछ (तेणं विमाणा) ते विभाने। (सव्वरयणामया) स २त्न भय (अच्छा) २१२७ (सहा) यिxn (लण्हा) मन (घद्वा) दृष्ट (महा) भृष्ट (नीरया) २०४२डित (निम्मला) निम (निपंका) ५४ २डित (निक्कंकडच्छाया) निश१२४१ तिवाणा (मप्पभा) प्रभावान् (सस्सिरिया) सश्री (सउज्जोया) अधोत युत (पासादीया) प्रसन्नता ४।२४ (दरिसणिज्जा) शनीय (अभिरूवा) मलि३५ (पडिरूबा) प्रति३५ (सिणं) ते (विमाणाणं) विमानाना (कप्पाणं) ४८वाना (बहुमज्झदेसभाए) वयाच्य (पंचवडिसया) ५२ मत स(पण्णत्ता) Hai छ (तं जहा) ते 20 ४१२ (अंक वडिंस) २५ तस (फलिहवडिंसए) २५४ावतस (रयणवडिसए) रत्नावत (जायरूववडिंसए) तत३॥पतस (मज्झे एत्य अच्चुयवडिसए) तमना मध्यमा मयुतायत छ (तेणं वडिंसया)