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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२७ ब्रह्मलोकादिवानां स्थानादिकम् ९२७ सप्रतिदिक, अत्र खलु आरणाच्युतौ नाम द्वौ कल्पौ प्रज्ञप्तौ प्राचीनप्रतीचीनायतौ, उदीचीनदक्षिणविस्तीर्णी अर्द्धचन्द्रसंस्थानसंस्थितौ अधिर्माला भासराशिवर्णाभौ असंख्येयाः योजनकोटिकोटीः आयामविष्कम्भेण, असंख्येयाः योजनकोटिकोटी: परिक्षेपेण, सर्वरत्नमयौ अच्छौ, श्लक्ष्णौ, मसृणौ, घृष्टी, पृष्टी नीरजसौ, निर्मलौ, निष्पकौ, निष्कङ्कटच्छायौ सप्रभौ सश्रीकौ सोयोती, प्रासादीयौ, दर्शनीयौ, अभिरूपौ प्रतिरूपौ, अत्र खलु आरणाच्युतानां देवानां (गोयमा) हे गौतम ! (आणयपाणयाणं कप्पाणं उप्पि) आनत प्राणत कल्प के ऊपर (सपक्खि सपडिदिसिं) समान दिशा और समान विदिशा में (एत्थ णं आरणच्चुया णामं दुबे कप्पे पण्णत्ता) यहाँ आनत प्राणत नामक दो कल्प कहा है (पाईण पडीणायया) पूर्व-पश्चिम में लम्बा (उदीणदाहिण वित्थिण्णा) उत्तर-दक्षिण में विस्तृत (अद्धचंदसंठाणसंठिया) अर्द्ध चंद्रमा के आकार के (अच्चिमाली भासरासिवण्णाभा) सूर्य के तेज के समान प्रभा वाले (असंखिज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं) असंख्यात कोडाकोडी योजन लम्बे-चौडे (असंखिज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं) असं. ख्यात कोडाकोडी योजन परिधि वाले (सव्वर यणामया) सर्वरत्नमय (अच्छा) स्वच्छ (सहा) चिकने (लण्हा) कोमल (घट्ठा) घटारे (महा) मठारे (नीरया) रज से रहित (निम्मला) निर्मल (निष्पंका) निष्पंक (निक्कंकडच्छाया) निरावरण कान्ति वाले (सप्पभा) प्रभा सहित (सस्सिरिया) शोभायुक्त (सउज्जोया) उद्योतमय (पासादीया) प्रसमानत प्रात ४८५ना १५२ (सपक्खिं सपडिदिसिं) समान हशा गने समान विहशायाम (एत्थणं आरणच्चुयाणाम दुवे कप्पा पण्णत्ता) मी मानत आशुत नाम मे ४६५ ४था छ (पाईणपडीणायया) पूर्व पश्चिममा ein (उदीण दाहिणवित्थिण्णा) उत्तर क्षमा विस्तृत (अद्वचंदसंठाणसंठिया) म यन्द्रभाना माना (अच्चिमाली भासरासिवण्णाभा) सूर्यना : समूडना समान मत्यत अमावा (असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं) यस च्यात डी योन eion पडे (असखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं) असभ्यात 111 यो परिधि (सव्वरयणामया) सव२त्नभय (अच्छा) २१२७ (मण्हा) यि४] (लण्हा) मिण (घट्ठा) घाटा (मट्ठा) भ8।२। (नीरया) २४थी हित (निम्मला) नि (निप्पका) नि०५४ (निक्क्कडच्छाया) निरा१२ आन्ति (सप्पभा) प्रभासहित (सस्सिरिया) शाला युत (सउज्जोया) धोतमय (पासादीया) प्रसन्नता ४।२४ (दस्सिणिज्जा) शनीय
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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