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________________ प्रज्ञापनासूत्रे ६२२ चत्वारिंशद् विमानावास सहसहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातम्, अवतंसकाः यथा सौधर्मावतंसकाः, नवरम् मध्ये अत्र महाशुक्रावतंसको यावद् विहरंति, महाशुक्रः अत्र देवेन्द्रो देवराजो यथा सनत्कुमारः, नवरम् चत्वारिंशतो विमानावाससह - त्राणाम्, चत्वारिंशतः सामानिकसाहस्रीणाम् चतसृणां च चत्वारिंशताम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम् यावद विहरति, कुत्र खल भदन्त । सहस्रारदेवानां पर्याप्तापर्याप्तानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! सहस्रारदेवाः . कल्प कहा है (पाईणपडीणायए) पूर्व-पश्चिम में लम्बा ( उदीर्णदाहिणवित्थिन्ने) उत्तर - दक्षिण में विस्तृत (जहा बंभलोए) जैसे ब्रह्मलोक (नवरं) विशेष ( चत्तालीस विमाणावास सहस्सा) चालीस हजार विमान ( भवतीति मक्खायं ) हैं, ऐसा कहा है (वर्डिसगा जहा सोहम्मवडिंसगा) अवतंसक सौधर्मावतंसक के समान (नवरं) विशेष (मज्झे इस्थ महासुकवर्डिसए) मध्य में यहां महाशुक्रावतंसक है (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं (महासुक्के इत्थ देविंदे देवराया) यहां महाशुक्र नामक देवेन्द्र देवराज है (जहा सणकुमारे) जैसे सनत्कुमार (नवरं) विशेष ( चत्तालीसा विमाणावास सहस्साणं) चालीस हजार विमानों का) ( चत्तालीसाए सामाणियसाहस्सीण) चालीस हजार सामानिक देवों का (चउह य चत्तालीसाणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) चार चालीस हजार अर्थात् एक लाख साठ हजार आत्मरक्षक देवों का ( जाव विहर) यावत् विचरता है । (कहिणं भंते! सहस्सार देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) छे (पाईण वडीणायए) पूर्व पश्चिममां सामी (उदीणदा हिणवित्थिष्णे ) उत्तर दक्षिणुभां विस्तृत ( जहा वंभलोए) भव। ग्रह्मसो४ (नवर) विशेष ( चत्तालीस बिमाणावाससहस्सा) यासीस हुन्नर विमान ( भवतीति मक्खायं) छे, भ अछे (वडिंगा जहा सोहम्मवडिं सगा ) अवतंस सौधर्भावित सना समान ( नवर) विशेष (मज्झे इत्थ महासुक्कवडि सए) मध्यमा अडि महाशुवत स ( जाव विहति ) यावत् वियरे छे ( महामुक्के इत्थ देवि दे देवराया) अडिछे भड्डाशुर्डे नाभ देवेन्द्र राम छे (जहा सणकुमारे) प्रेम सनत्कुमार (नवर ) विशेष ( चत्तालीसा विमाणावाससहस्साणं) यासीस हुन्नर विभानोना ( चत्तालीसाए सामा णीय साहस्सीणं) यासीस हुन्नर सामानि हेवाना (चउण्ह य चत्तालीसाणं आयरक्खदेव साहस्सीणं) यार यासीस हमर अर्थात् भेउ साथ साह हुनर आत्म२४ देवाना (जाव विहरइ ) यावत् विरता रहे छे ( कहि णं भंते । सहस्सारदेवाणं पज्जत्तापज्जत्तार्ण ठाणा पण्णत्ता ?)
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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