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________________ ૮ प्रज्ञापनासूत्रे मारमाहेन्द्रयोः कल्पयोरुपरि सपक्षं सप्रतिदिन बहूनि योजनानि यावत् उत्प्रेत्य अत्र खलु ब्रह्मलोको नाम कल्पः प्राचीनप्रतीचीनीयातः, उदीचीनदक्षिणविस्तीर्णः, प्रतिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितः, अर्चिर्माला मासराशिप्रभः, अवशेषं यथा सनत्कुमाराणं, नवरम् चत्वारि विमानावासशतसहस्राणि, अवतंसका यथा सौब्रह्मलोक देवों के स्थान शब्दार्थ - ( कहि णं भंते ! वंभलोगवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगनन् ! पर्याप्त तथा अपर्याप्त ब्रह्मलोक देवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? ( कहि णं भंते ! वंभलोगदेवा परिवसंति ?) हे भगवन् ! ब्रह्मलोक के देव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम (सकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं उपिं ) सनत्कुमार माहेन्द्र कल्पों के ऊपर (पक्खि सपडिदिसं) समान दिशा और समान विदिशा में (बहूई जोयणाई जाव उपपत्ता) बहुत योजन यावत् जा कर (gri) यहाँ भलोग नामं कप्पे ) ब्रह्मलोक नामक कल्प है ( पाईणपडीणायए) पूर्व-पश्चिम में लम्बा ( उदीणदाहिण विधिन्ने) उत्तर - दक्षिण में विस्तीर्ण (पडिपुण्ण चंद संठाण संठिए) प्रतिपूर्ण चन्द्रमा के आकार का (अच्चिमाली भासरासिप्प भे) ज्योतियों के समूह तथा दीप्तियों की राशि के समान प्रभा वाला (अवसेसं जहा सणकुमाराणं) शेष वर्णन सनत्कुमार कल्प के समान (नवरं ) विशेष ( चत्तारि विमाणावास सय सहस्सा) चार लाख विमान (वर्डिसया जहा सोहम्म બ્રાલેકના દેવેને સ્થાન शब्दार्थ - (कहिणं भंते! बंभलोगदेवाणं पज्जत्ता पज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? ) हे भगवान् ? पर्याप्त तथा अपर्याप्त ब्रह्मो हेवाना स्थान इयां छे ? ( कहिणं भंते । बंभलोग देवा परिवसंति १) हे भगवन् ब्रह्मसोना देव यां निवास रे छे ? (गोयमा) हे गौतम । (सकुमारमाहिदा कप्पाणं उ)ि સનત્યુમાર भाहेन्द्र उदयना ीयर (सपक्खिं सपडिदिसं) समान हिशा भने समान विधिशामभां (बहूई जोयणाई जात्र उत्पइत्ता ) धाया योन धने (एत्थणं) मडि (भलोए नामं कपे) ह्मोङ नाम उपमा (पाईण पडीणायए) पूर्व पश्चिभभां सामां (उदिणदाहिण वित्थिन्ने ) उत्तर दक्षिणुभा विस्तीर्ण (पडिपुण्ण चंद ठाण संठिए) अतिपूर्ण यन्द्रभाना આકારના (अच्चिमालीभासरा सिप्पभे) ज्योतिशोना सभूड तथा हीसियोना समान प्रलावाणा ( अवसेसं जहा सगँकुमाराणं) शेष वन सनभार उदयना समान (नवरं ) विशेष ( चत्तारि विमाणावास -
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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