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________________ प्रमेयबोधिनी टोका द्वि. पद २ सू.२६ ईशानादिदेव स्थानानि ८९५ सप्ततेः सामानिकसाहस्रीणाम, चतसृणां सप्ततीनाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रःणाम् यावद् विहरति ॥ सू० २६॥ ___टीका-अथ पर्याप्तापर्याप्तकेशानादि देवानां स्थानादिकं प्ररूपयितुमाह'कहिणं भंते ईसाणाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णता ? गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कुत्र खलु-कस्मिन् प्रदेशे, ईशानानां देवानां पर्याप्तापर्याप्तानां, स्थानानि-स्थित्यपेक्षया स्वस्थानानि प्रज्ञतानि-प्ररूपितानि सन्ति ? तदेव विशदयितुं प्रकारान्तरेण पृच्छति-'कहिणं भंते ! ईसाणगदेवा परिव. संति ?' हे भदन्त । कुत्र खलु-कस्मिन् प्रदेशे ईशानक देवाः परिवसन्ति -? भगवान् उत्तरयति-गोयमा !' हे गौतम ! 'जंबूदीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंद, उप्पि) ईशान कल्प के ऊपर (सपक्खि सपडिदिसिं) समान दिशा और समान विदिशा में (बहुई जोयणाई) बहुत योजन (जाव) यावत् (यहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ) बहुत कोडाकोडी योजन (उड्) ऊपर (दूरं उप्पइत्ता) दूर जाकर (एत्थणं) यहां (माहिदेणामं कप्पे पण्णत्ते) 'माहेन्द्र नामक कल्प कहा है (पाईण पडीणायए) पूर्व-पश्चिम में लम्बा (जाव एवं जहेव सणंकुमारे) यावत् सनत्कुमार के समान (नवरं) विशेषता यह है (अट्ठ विमाणावाससयसहस्सा) आठ लाख विमान (वडिसया जहा ईसाणे) अवतंसक जैसे ईशान कल्प में (नवरं मज्झे इत्थ माहिंदवडिसए) विशेष यह कि यहाँ मध्य में माहेन्द्रावतंसक है (एवं) इस प्रकार (जहा) जैसा (सणंकुमाराणं) सनत्कुमार (देवाणं) देवों का (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं (माहिंदे इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ) यहां माहेन्द्र नायक देवेन्द्र देवराजा निवास करता है (अरयंवरवत्थधरे) रजरहित अम्बर के समान वस्त्रों का धारक (एवं) इस प्रकार (जहा सणंकुमारे) सनत्कुमार के समान (जाव (गोयमा ) 3 गौतम । (ईसाण्णस्स कापरम उप्पिं) शान ४८५न। ५२ (सप. खि सपडिदिसि) समान, दिशामा भने समान विशायमा (बहुई जोयणाई) घ। यान (जाव) यावत् (बहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ) घ i डी योन (उडूढ) १५२ (दूर उत्पात्त) ६२ ने (एत्य) मलि (माहि दे णाम कप्पे पण्णत्ते) माउन्द्र नाम: ४३५ ४ो छ (पाईण पडीणायण) पूर्व-पश्चिममा ein (जाव एवं जहेच सणकुमारे) यावत् सनमारना समान (नवर) विशेषता मा छ (अटु विमाणावाससयसम्मः) २08 am विमान (बडि - सया जहा ईसाणे) अवत' 240 शान ४६५मा (नवरं मझे इत्य माहिद वडिसए) विशेषता मा छ यहि मध्यम मान्द्रावतस छ (एवं) मा २ (जहा) २वा (सणंकुमाराणं) सनभा२ (देवाण) हेवाना (जाव विहरंति) यावत् वियरे छे (महिंद इत्य देवि दे देवराया परिवसइ) मा भाउन्द्र नामना
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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