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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२६ ईशानादिदेव स्थानानि बहूनि योजनसहस्राणि यावत् अन् उत्प्रेत्य अत्र खलु ईशानो नाम कल्पः . प्रज्ञप्तः, प्राचीनप्रतीचीनायतः, उदीचीन-दक्षिणविस्तीर्णः, एवं यथा सौधर्मों • यावत् प्रतिरूपः, अत्र खलु ईशानकदेवानाम् अष्टाविंशतिः विमानावासशत* सहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातं, तानि खलु विमानानि सर्वरत्नमयानि, यावत् प्रतिरूपाणि, तेषां वहमध्यदेशभागे पञ्चावतंसकाः प्रज्ञप्ता , तद्यथा-अङ्कावतंसकः, स्फटिकावतंसकः, रत्नावतंसको जातरूपावतंसकः मध्ये ईशानावतंसकः, ते रमणीय भूमिभाग से (उड्डूं) ऊपर (चंदिमसरियगहनवत्ततारास्वाणं) चन्द्र, सूर्य. ग्रह, नक्षत्र और तारों से (बहूई जोयणसयाई) बहुत सौ योजन (वह जोयणसहस्साई) बहुत हजार योजन (जाव) यावत् (उई उप्पइत्ता) ऊपर जाकर (एत्थ ) यहां (ईसाणे णामं कप्पे पण्णत्ते) ईशान नामक कल्प कहा है (पाईणपडीणायए) पूर्व-पश्चिम में लम्बा (उदीणदाहिणवित्थिन्ने) उत्तर-दक्षिण में विस्तार वाला (एवं जहा सोहम्मे) इस प्रकार जैसा सौधर्मकल्प (जाब पडिहवे) यावत् प्रतिरूप है ___(तत्थ णं) वहां (ईसागगदेवाणं) ईशानक देवों के (अट्ठावीसं विमाणवा समयसहस्सा) अट्ठाईस लाग्य विमान (अवंतीति मक्खाय) हैं, ऐसा कहा है (ते णं विमाणा) वे विमान (सव्यरयणालया) सर्वरत्नमय हैं (जाव पडिख्वा) यावन् प्रतिरूप हैं (तेसि णं बहुमज्झदेसभागे) उनके एकदन बीचों बीच (पंच) पांच (बसिया) अवतंसक (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अंकवळिहण) अंकावतंसक (फलिडिसए) स्फटिकावतंसक (रय गार्डिसा) रत्नावतंसक (जातनी (उड्ढ) A५२ (चदिम,सृरियगहनक्खत्तताररूवाणं) A-2, सूर्य, अड, नक्षत्र मने तामाथी (बहूइं जोयणस पाई) घyा योन (बहुइ जोयगसहस्साई) घl M२ योरान (जाव) यावत् (उइ उपइत्त.) १५२००२ (एत्थणं) माह (ईसाणे णामं कप्पे पण्णते) शान नाम४ ५८५ ४ो छ (प.ईण पडिणायग) पूर्व पश्चिममi aiगा (उदीणदाहिण विस्थिन्ने) उत्तर दक्षिा विस्तारपा (एवं जहा सोहम्मे) मा १२ को सौधम ४८५ (जाव पडिरूवे) यावत् प्रति३५ छ : (तत्यण) त्यां (ईसाणग देवाणं) शान५ हेवाना (अट्ठावीस विमाणावाससयसहस्सा) मध्यावास साप विमान (भवंतीति मक्खाय) छे म यु छ (तेण बिमाणा) ते विमान (सब रयणमया) स २त्नभय छ (जाव पडिरूबा) यावत् प्रति३५ छ (तेसिणं वहमज्झदेसभांगे) तेमना गेम पश्यावय (पंच) पाय (वडिंसया) अवत'स (पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) तेसो 21 (अंकवडिं सए) पतस४ (फलिहवडिसए) २३टिवत'स४ (रयणवाडिंसए) २त्नावत' प्र० ११२
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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