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________________ प्रज्ञापनासूत्रे ८८८ भंते! साहिंदग देवा परिवसंति ? गोयमा ! ईसाणस्स कप्पस्स उपि सपवित्र सपडिदिसिं बहुई जोयणाई जाव चहुयाओ जोयण कोडाकोडीओ उ दूरं उप्पड़ता, एत्थ तं माहिंदे णामंकप्पे पण्णत्ते, पाईणपडीणायए, जाव एवं जहेव सणकुमारे, नवरं अटू विमाणावाससयसहस्सा, वर्डिसया जहा ईसाणे, नवरं सझे इत्थ माहिंदवडिंसए, एवं जहा सणकुमाराणं देवाणं जाव विहरति, माहिंदे इत्थ देविंदे देवराया परिवसंह, अयरंवरवत्थधरे, एवं जहा सणकुमारे जात्र विहरड़, नवरं अटूह विमाणावास सय सहस्ताणं सत्तरीए सामाणियसाहस्सीणं हंसत्तरी आयरक्खदेवसाहस्तीणं जाव विहरड़ ॥ सू०२६। छाया - कुत्र खलु भदन्त । ईशानानां देवानां पर्याप्तापर्याप्तानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! ईशानकदेवाः परिवसन्ति ? गौतम ! जम्बूद्वीपे दीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरेण अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बहुसमरमणीयाद् भूमिभागाद् ऊर्ध्वं चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारारूपाणां वह नियोजनशतानि, ईशानादि देवों के स्थान की वक्तव्यना शब्दार्थ - (कहि णं ते! ईसाणार्ण देवाणं पज्जतापज्जन्त्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन ! पर्याप्त और अपर्याप्त ईशान देवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? ( कहि णं संते ईसाणगदेवा परिवसंति ?) हे भगचन् ! ईशानक देव कहां निवास करते हैं ? (गोवा) हे गौतम! (जंबुद्दीवे दीवे) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में (मंदरस्स पव्त्रयस्स उत्तरेणं) मेरु पर्वत से उत्तर में (इमीसे स्थणपसाए पुढचीए) इस रत्नप्रभा पृथिवी के (बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ ) बिलकुल समतल ઈશાનાદિ દેવાના સ્થાનની વકતવ્યતા 1 शब्दार्थ - (कहिणं भंते । ईसाणदेवाणं पज्जत्तापत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? ) भगवन् पर्याप्त अने अपर्याप्त शान हेवाना स्थानयां ह्यां छे ? ( कहिणं भंते ! ईसाग देवा परिवसंति ?) लगवायां स्थानभां निवास १२ छे ? (गोयमा ।) हे भौम । (जंगरी) स्मूद्रीय नाम द्वीयसां (मंदर स पव्यय्स्स उत्तरेणं) भेर् पर्वतथी उत्तरमा (इनीसे पृथ्वीना (नहु समरणिज्जाओ भूमिभाग ओ) मिसडु भापुर) मा रत्नप्रभा समनद रभशीय लूभिलाग
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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