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________________ प्रज्ञापनासूत्र अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बहुसमरमणीयाद् भूमिभागाद् अर्ध्वम् चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारारूयाणास वहुनि योजनशतानि, बहूनि योजनसहस्राणि, बहूनि योजनशतसहस्राणि बहुकाः योजनकोटी:, बहुकाः योजनकोटाकोटीः ऊर्ध्वदूरम् उत्प्रेत्य, अत्र खलु सौधर्मेशानसनत्कुमारसाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकमहाशुक्रसहस्रार-आनत प्राणत--आरणाच्युत अवेयकानुत्तरेषु, अत्र खलु वैमानिकानां देवानाम् चतुरशीति विमानावासशतसहस्राणि, सतनवतिश्चसहस्राणि, त्रयोभगवन् ! वैमानिक देव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम (हमीसे रयणप्पभाए पुढवीए) इस रत्नप्रभा पृथिवी के (बहुसमरमणिज्जाओ) बिलकुल सल एवं रमणीय (भूमिभागाओ) भूमि भाग-से (अ ) अपर (चंदिमसूरियगहलक्ख स ताराख्वाणं) चन्द्र, सूर्य ग्रह नक्षत्र तथा तारक रूप ज्योतिषकों के (बहई जोयणलयाई) अनेक सौ योजन (बहई जोयणसहस्साई) अनेक हजार योजन (बहूई जोयणसयसहस्साई) अनेक लाख योजन (बहुगाओ जोयणकोडीओ) बहुत करोड योजन (बहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ) यहुत कोडा कोडी योजन (उडू) उपर (दूरं) दूर (उप्पइत्ता) जाकर (एस्थ णं) यहां (सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंद बंभलोयलंतगमहासुक्कसहस्सारआणयपाणयआरणच्चुय गेवेजणुत्तरेसु) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, अवेयक और अनुत्तर विमानों में (एत्थणं) यहां (वेमाणियाणं देवाणं) वैमानिक देवों के (चउरासीय विमाणावालसयसहस्सा सत्ताणउई च सहस्सा तेवीसं च विमाणा) चौरासी लाख, सत्तानवे (गोयमा) गौतम (इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए) २२त्नप्रभा पृथ्वीना (बहुसमरमणिज्जाओ) मिसस सभ तेमा २मणीय (भूमिभागाओ) भूमिमाथी (उ8) ७५२ (चदिमसूरियगहनस्खत्ततारारूवाण) यन्द्र ,सूध, तथा नक्षत्र तथा ता२४ १३५ न्योतिष्ठान (बहूई जोयणसयाई) मने सो योन (बहूई जोयणसहस्साइं) मने योन (बहुगाओ जोयणकोडीओ) घgl४२।यान (बहुगाओ जोयण कोडाकोडीओ) और डी योरन (उडूढ). १५२ (दूर) २ (उप्पइत्ता) ४ने (एत्थणं) माहि (सोहम्मीसाणसणंकुमार माहिंदवभलोय लंतग महामुक्कसहस्साए आणय पाणयआर णायच्चुयगेवेजगुत्तरेसु) सी ધર્મ, ઇશાન સનકુમાર; મહેન્દ્ર, બ્રહ્મલેક, લાન્તક, મહાશુક, સહસ્ત્રાર આનત प्रात; मा२१; अश्युत; अवय मने मनुत्तर विमानामा (एत्यणं) मडि (वेमाणियाणं देवाणं) वैभानि४ हेवान (चउरासीइ विमाणावाससयसहस्सा
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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