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________________ 'प्रमेययोधिनी टीका द्वि. पद २ सू २२ पिशाचदेवानां स्थानानि वसन्ति ? गौतम ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणेन अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः रत्नमयस्य काण्डस्य योजनसहस्त्रबाहल्यस्य, उपरि एकं योजनशतमवगाह्य, अधश्चैकं योजनशतं वर्जयित्वा मध्ये अष्टसु योजनशतेषु, अत्र खलु दाक्षिणात्यानां पिशाचानां देवानां तिर्यन असंख्येयानि भौमेयनगरावाससहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातं, तानि खलु भवनानि यथा औधिको भवनवर्णकस्तथा भणितव्यानि, यावत् प्रतिरूपाणि, अत्र खलु दाक्षिणात्यानां पिशाहे भगवन् ! दक्षिण दिशा के पिशाच देवों के स्थान कहां हैं ? (कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला पिसाया देवा परिवसंति?) हे भगवन् ! दक्षिणदिशा के पिशाच देव कहां निवास करते हैं ? (गोयला !) हे गौतम ! (जंबुद्दीवे दीवे) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में (मंदस्स पव्वयस्स) मन्दर पर्वत के (दाहिणणं) दक्षिण में (इमीसे) इस (रयणप्पभाए पुढवीए) रत्नप्रभा पृथ्वी के (रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स) एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के (उपरि) ऊपर (एगं जोयणसर्थ) एक सौ योजन (ओगाहिता) अवगाहन करके (हेट्ठा चेगं जोयणसयं वज्जित्ता) और नीचे एक सौ योजन छोडकर (मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु) मध्य में आठ सौ योजनों में (एत्थ णं) यहां (दाहिणिल्लाणं पिलायाणं) दाक्षिणात्य पिशाच (देवाणं) देवों के (तिरियं) तिर्छ (असंखेज्जा भोजनगरावाससहस्सा) असंख्य हजार नगरावास (भरतीति मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है (ते णं भवणा) वे भवन (जहा ओहिओ भव गवण्णओ तहा भाणियव्यो) जैसा दक्षिण दिशाना पाय वाना स्थान यांच्या छ ? (कहिणं भंते ! दाहिणिल्ला पिसाया देवा परिवसंति ?) भगवन् । दक्षिणशाना (पाय ३११ ४या निवास ४२ छ ? (गोयमा I) गौतम (जम्बुदीवे दीवे) मुदी५ नाम दीपभा (मंदरस्स पव्वयस्स) भन्४२ ५वतन (दाहिणेणं) क्षिामा (इमीसे) 24. (रयणप्पभाए पुढवीए) २त्नमा पृथ्वीना (रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सवाहल्लस्स) से डन्त२ योन मोटा २त्नमय उना (उमरि) १५२ (एग जोयणसयं) २४ सो यासन (ओगाहित्ता) २०१॥ईन ४१२ (हेढा चेगं जोयणसयं वज्जित्ता) मने नी2 ४ सो योन ने (मज्झे अदृसु जोयणसएसु) मध्यमा 2406से योनिमा (एत्थ णं) महा (दाहिणिल्लाण पिसायाण) इक्षिणात्य पिशाय (देवाण) हेवाना (तिरिय) ति (असंखेज्जा भोमेज्ज नगरावाससहस्सा) मस ५ २ नारावास (भवंतीति मक्खाय) छे, मेम ४थु छ (ते णं भवणा) ते अपने। (जहा ओहिओ भवणवण्णओ तहां भाणिययो) २७ समुश्यय अपनानु पान ४ तेवु
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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