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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२० सुवर्णकुमारदेवानां स्थानानि ७६५ यावद् विहरन्ति, वेणुदेवो, वेणुदालिश्च अत्र द्वौ सुवर्णकुमारेन्द्रौ सुवर्णकुमारराजानौ परिवसतः, महर्दिकी यापद् विहरतिः, कुत्र खलु भदन्त ! दाक्षिणात्यानाम् सुवर्णकुमाराणाम् पर्याप्ता पर्याप्तानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुन खलु भदन्त ! दक्षिणात्याः सुवर्णकुमागः देवाः परिवान्ति ? गौतम ! अश्या यावत् मध्ये अष्ट सप्रतिसहस्रोत्तरे योजनशनस स्टे, अत्र खलु दाक्षिणात्यानाम् सुवर्णकुमाराणाम् वहुन (सुवण्णकुमारा देवा) सुपर्णकुमार देव (परिवसंति) बसते हैं (महिडिया) महान् ऋद्धि के धारक (सेस) शेष (जहा) यथा (ओहियाणं) सामान्य भवनपतियों का (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं (वेणुदेवे बेगुहाली य) वेणुदेव और वेणुदाली (इत्थ) यहां (दुवे) दो (सुवण्णकुमारिंदा सुपर्णशुमारों के इन्द्र (सुवण्णकुमाररायाणो) सुपर्णकुमारों के राजा (परिवति) वसते हैं (महिड्डिया) महर्दिक (जाव) यावत् (चिहरंति) विचरते हैं । __(कहि णं मंते ! दाहिजिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं पजत्तापजत्ताणं ठाणा पण्णता ?) हे भगवन् ! पर्याप्त तथा अपर्याप्त दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान कहीं कहे हैं ? (कहि णं संते ! दाहिणिल्ला सुवण्णकुमारा देया परिवसंति ?) हे भगवन् दक्षिण दिशा के सुपर्णकुमार देव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा !) है गौतम ! (इमीसे) इस (जाव) यावत् (मडो) मध्य में (अट्ठहत्तरे जायणसयसहस्से) एक लाख अठहत्तर हजार योजलों में (एत्यणं) यहाँ (दाहिणिल्लाणं) दक्षिण दिशा के (सुवण कुमाराणं) सुपर्ण कुमारों के (अत्तीसं) अडतीस हेव (परिमंति) से छे (महिढिया) महान् द्वना पा२४ (सेम) शेष (जहा) यथा (ओहियाणं) सय सवनपतियोना (जाव विहरंति) यावत् वियरे छ (वेणुदेवे गुदाली) हे। मने वेली (इत्थ) माडी (दुवे) ये (सुवण्णकुमारिदा) सुवर्ण माना न्द्र (सुवण्णकुमाररायाणो) सुवर्णभाशना २०॥ (परिवसंति) से छे (महिइढिया) मद्धि' (जाव) यावत् (पिहरंति) वियरे छ. (काह णं भंते । दाहिणिल्लाणं सुवण्णकुमारणं पज्जत्तोपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) હે ભગવન ! પર્યાપ્ત તથા અપર્યાપ્ત દાક્ષિણાત્ય સુવર્ણકુમારોના સ્થાન કયાં ४i छ ? (कहिणं भंते ! दाहिणिल्ला सुबण्णकुमारा देवा परिवसंति ?) सायन् ! क्षिy हिशाना सुवर्ण शुभा२ ३ ४ निवास ४२ छ ? (गोयमा) गौतम । (इमीसे) ॥ (जाव) यावत् (मझे) मध्यमा (अहुत्तरे जोयणसयसहस्से) मे ety २५४योतेर ७०१२ योनमा (एत्थणं) माउ (दाहिणिल्लाण) क्षिय शाना (सुवण्णकुमाराणं) सुवर्णभावना (अट्टत्तीस) २५त्रीस (भवणावास
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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