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________________ प्रमेयधोधिनी टीका द्वि. पद २ स.१९ नागकुमारदेवानां स्थानानि ७४५ त्तानि, शेषं यथा दाक्षिणात्यानां यावद् विहरन्ति भूतानन्दः, अत्र नागकुमारेन्द्रो नागकुमारराजा परिवसति, महद्धिको यावद् प्रभासयन् स खलु तत्र चत्वारिंशतो भग्नावासशतसहस्राणाम् आधिपत्यं यावद् विहरति, टीका-अथ पर्याप्तापर्याप्तक नागकुमारादीनां स्थानादिकं प्ररूपयितुमाह'कहि णं गते ! नागकुमाराणं देवाणं' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कुत्र खलु कस्मिन् प्रदेशे नागकुमाराणाम् देवानां 'पज्जत्तापज्जताणं' पर्याप्तापर्याप्तानाम् 'ठाणा पण्णत्ता ? स्थानानि-स्थित्यपेक्षया स्वस्थानानि इत्यर्थः प्रज्ञप्तानि-प्ररूपितानि ? तदेव प्रकारान्तरेण विशदयितुं पृच्छति-'कहिणं भंते ! नागकुमारा (ते णं भवणा) वे भवन (बाहिं वहा) बाहर से गोल हैं (सेसं जहा दाहिणिल्लाणं) शेष दक्षिणात्यों के समान (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं (भूयाणंदे) भूतानन्द नामक (एत्थ) इनमें (नागकुमारिंदे) नागकुमारों का इन्द्र (नागकुमारराया) नागकुमारों का राजा (परिक्सइ) वसता है (महिड्डिए) महद्धिक (जाव पभासेमाणे) यावत् प्रकाशित करता हुआ। (से णं) वह भूतानन्द (तत्थ) वहाँ (चत्तालीसाए भवणावाससयसहस्साणं) चालीस लाख भवनों का (आहेच्च जाव विहरइ) अधिपतित्व करता हुआ यावत् रहता है। ___टीकार्थ-अब पर्याप्त तथा अपर्याप्त नागकुमार आदि देवों के स्थान आदि की प्ररूपणा करते हैं । श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न किया -हे भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमार देवों के स्वस्थान कहां हैं ? इसी प्रश्न को दूसरे प्रकार उपस्थित करते हैं-हे भगवन् ! (तेणं भवणा) d सपने। (बाहिं वट्टा) हाथी गाण छे (सेसं जहा दाहिणिल्लाणं) शे५ दक्षिणात्यांना समान (जाव विहरंति) यावत् वियरे छ (भूयाणंदे) भूतानन्द नामना (एत्थ) तेयोमा (नागकुमारिन्दे) नामा। न। छन्द्र (नागकुमार गया) नामाना रात (परिवसइ) पसे छे (महिड्ढिए) महधि (जाव पभासेमाणे) प्रोशित ४२शन २ छ (सेणं) ते भूतानन्द (तत्थ) त्यां (चत्तालीसाए भवणावाससयसहस्साणं) यादीस ern सपनाना (आहेवच्चं जाव विहरइ) विपतित्व ४२॥ ३४॥ २ छ. ટીકાથ-હવે પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત નાગકુમાર આદિ દેના સ્થાન આદિની પ્રરૂપણ કરે છે. શ્રીગૌતમ સ્વામીએ પ્રશ્ન કર્યો છે-હે ભગવન્ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત નાગકુમાર દેના સ્થાન ક્યા છે? એજ પ્રશ્ન ને બીજી રીતે ઉપસ્થિત કરે प्र० ९४
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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