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________________ ६३७ प्रमेयवोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.११ तैरयिकाणां स्थानानि परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो ! | ते णं निच्चं भीया, निच्च तत्था, निच्चं तसिया, निच्चं उब्बिग्गा, निच्चं परमजसुहसंबद्धं णरगभयं पञ्चणुभवमाणा विहरति ॥ सू० १९ ॥ छाया—कुत्र खलु भदन्त ! पङ्कप्रभा पृथिवीनैरयिकाणां पर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! पङ्कप्रभा पृथिवीनैरयिकाः परिवसन्ति ? गौतम ! पङ्कप्रभा पृथिव्या विंशत्युत्तरोयोजनशतसहस्रवाहल्याया उपरि एकं योजनसहस्रमवगाह्य, अधश्चैकं योजनसहस्रं वर्जयित्वा मध्ये अष्टादशोत्तरे योजनशतसहस्रे, अत्र खलु पड्ङ्कप्रभापृथिवी नैरयिकाणां दश निरयावास शतसहस्राणि भव शब्दार्थ - ( कहि णं अंते ! पंकप्पभापुढवीनेरइयाणं पज्जत्तापज्जतगाणं ठाणा पण्णत्ता ?) भगवन् ! पंकप्रभा के पर्याप्त और अपर्याप्त नारकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? ( कहि णं भंते ! पंकप्पा पुढवीनेरइया परिवति ?) हे भगवत् ! पंकप्रभा के नारक कहां रहते हैं ? ( गोयसा ! पंकष्पभावीए वीसुत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए) हे गौतम ! एक लाख वीस हजार योजन मोटी पंकप्रभा के (उवरि एगं जोयणसहस्सं) ऊपर काएक हजार योजन (ओगाहित्ता) अवगाहन करके (हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता) नीचे एक हजार योजन छोडकर (मज्झे) मध्य में (अट्ठारसुत्तरे जोयणसयसहस्से ) एक लाख अठारह हजार योजन में (एत्य णं) यहां (पंकप्पापुढवीनेरइयाणं ) पंकप्रभा पृथिवी के नारकों के ( दस निरयावास सय सहस्सा) दश लाख नरकावास (भक्तीति मक्खायं ) हैं ऐसा कहा है । शेष शब्दार्थ पूर्ववत् ॥ ११॥ शब्दार्थ - (कहि णं भंते । पकापभा पुढवी नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! पलाना पर्याप्त भने अपर्याप्त नारोना स्थान यां या ह्या छे ? (कहि णं भंते । पंकापभा पुढवी नेरइया परिवसंति ?) हे भगवन् । च ४अलाना ना२४ ४या रहे छे ? (गोयमा ! पंकप्पभा पुढवीए वीसुत्तरजोयणसयसहस्स बाहल्लाए) हे गौतम! मेड साथ पीस हुनर योन्जन मोटी पडलाना (बरिं एग जोयणसहस्सं) (५२ मे हुनर योन (ओग हित्ता) अवगाहन रीने (हिट्टा चेंगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता) नाथेना मे हुन्नर योन्जन त्यकने (मज्झे) भाभा (अट्ठारसुत्तरे जोयणसयस हम्से) भेउ साज અઢાર હાર योन्टनमा ( एत्थण) अड्डी (पंकापसा पुढवी नेरइयाणं) पशुप्रला पृथ्वीना नारोनो (इस निरयावाससय सहम्सा ) ह साथ नारश्वास ( भवतीति मक्खायं) छे भ કહ્યુ છે શેષ શબ્દા પૂર્વવત્ ॥ ૧૧ ૫
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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