SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 553
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३१ प्रमेयवोधिनी टीका हि. पद २ सू.१० नैरयिकाणां स्थानानि गणिवन्नाभा, कक्खडफासा, दुरहियासा असुभा णरगा, असुभा रगेसु वेयणाओ, एत्थ णं वालुयव्पभापुढवीनेरइयाणं पज्जत्तापजत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता, उववाएणं लोयस्त असंखेज्जइ भागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, तत्थ जं वहवे वालुयप्पभापुढवीनेरइया परिवसंति - काला कालोभासा गंभीर लोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णं पण्णत्ता समणाउसो ! । ते णं निच्चं भीया निच्चं तत्था, निच्वं तसिया, निच्चं उच्विग्गा निच्च परममसुहसंबद्ध रगभयं पञ्चणुब्भवमाणा विहति ॥ सू० १०॥ छाया— कुत्र खलु भदन्त ! वालुकाप्रभापृथिवीनैरयिकाणं पर्याप्तापर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! वालुका प्रभापृथिवीनैरयिकाः परिवसन्ति ? गौतम ! वालुकाप्रभा पृथिव्या अष्टाविंशत्युत्तरयोजनशतसह ह्रवाहल्याया उपरि एकं योजनसहस्रमवगाह्य, अधथैकं योजनसहस्रं वर्जयित्वा मध्ये पविंश शब्दार्थ - (कहि णं भंते ! वालुयप्पभा पुढवीनेरइयाणं पज्जन्त्तापज्जताणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! वालुकाप्रभा पृथिवी के पर्याप्त और अपर्याप्त नारकों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? ( कहि णं भंते ! वालुयापुढवीनेरइया. परिवसंति ?) हे भगवन् ! वालुकाप्रभा के नारक कहाँ निवास करते हैं ? (गोयमा ! वालुयप्पभापुढचीए अट्ठावीसुत्तरजोयणसय सहस्सबाहल्लाए ) हे गौतम ! एक लाख अट्ठाईस हजार योजन मोटी वालुकाप्रभा पृथिवी के (उवरिं) ऊपर के (एग जोयणसहस्सं) एक एजार योजन (ओगाहित्ता) अवगाहन करके (हेडा चेगं जोयणसहस्सं वजित्ता) और नीचे एक हजार योजन छोडकर (मज्झे शब्दार्थ - ( कहिणं भंते । वालुयष्पभा पुढवी नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन वासुप्रला पृथ्वीना पर्याप्त भने अपर्याप्त नारन स्थान यासां छे ? ( कहिणं भंते । वालुयप्पभा पुढवी नेरइया परिवसंति 1) लगवन् वासुडायलाना ना२५ श्या निवास उरे छे ? (गोयमा । वालुयप्पभा पुढवीए अट्ठावीसुत्तरजोयणसयसहम्सवाहल्लाए ) हे गौतम । भेड परना हुन्नर योजन भोटी वासुप्रला पृथ्वीना (उअरिं) मेड डलर थोन्न (ओगाहित्ता) भवगाहन पुरीने લાખ અશ્ચાવીસ ( एगं जोयणसहसं) (हेट्टा चेंगं जोयणसहसं
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy