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प्रज्ञापमास्त्र ४वडक-द्राविड चिल्वल-पुलिन्द-आरोप-डोव-पोकाण-गन्धहारकाः, वल्हीकअल्ल-रोम-माप-लवकुशाः, मलकाश्च चुञ्चुकाश्च वन्धुकाश्च-चूलिक.-कोकणकभेद-परहव-मालव-मकराऽऽभापिकाः, कणवीर-ल्लासिक-खसाः, खासिकाः न दुराः, मौण्ढा:-डोम्बिलाः, गलओसाः प्रदोपाः केकेयाः अक्खागाः, हूणाः, रोमकाः, भ्रमररुताः, चिलात विषयवासिनश्च एव मादयः। ते एते म्लेच्छाःसू.३७)
टीका-अथ कर्मभूमकान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं कम्मभूमगा ?'-अय के ते-कतिविधा इत्यर्थः कर्मभूमकाः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'कम्मभूमगा पन्नरसउड्ड, भण्डक, निण्णक, पक्कणिक (कुलक्ख-गोंड-सिंहल-पारसतगांधा) कुलाक्ष, गोंड' सिंहल, पारसक, आन्ध्र (कोंच-अंबडय-दमिल -चिल्लक-पुलिंद-हारोस-दोब-पोक्काण-गंधाहारया) क्रौंच, अम्बडक, द्राविड, चिल्लक, पुलिंद, हारोष, डोव, पोक्काण, गन्धहारक: (प) ब (हलिय-अज्झल-रोम-मास-(ल) बउसा, बल्हीक, जल्ल, रोम माष, (ल) बकुश, (मलया य) मलक (बंधुया य) बन्धुक (चूलियकोंकणग-मेय-पल्हव-मालव-मग्गर-आभासिया) चूलिक, कोंकणक, मेद, पल्हव, मालव, मग्गर, आभाषिक (कणवीर-ल्हसिय-खसा) कणवीर, ल्हासिक, खास (खासिय-णेदूरमोंढ, डोंबिल-गलओसपओस-कक्कोय-अक्खाग-हूण-रोमग-भमररुय-चिलाय-विसयवासी य एवमाई) खासिक, नेदूर, मोंढ, डोम्बिल, गलओस, प्रदोष, कैकेय, अक्खाग, हूण, रोमक, भ्रमररुत, चिलात देशवासी इत्यादिक (से त्तं मिलिक्खू) यह सब म्लेच्छ हैं ॥३७॥
टीकार्थ-अब कर्मभूमक मनुष्यों की प्ररूपणा करते हैं। प्रश्न हैकर्मभूमक मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं ? भगवान् ने उत्तर दियाअंबडय, दमिल, चिल्लल पुलिंद, हारोस, दोव पाक्काण गंधाहारया) य, मम्॥3, द्राविड, सिस, पुलि, शस, मि, पा४४, अन्य।२४ (प) (ब) (हालिय अज्झलग रोममास, ल ब उसा) पा४ि , or, राम, भाष, स, प, श (मलया य)मस (बन्धुयाय) मधु (चूलिय कोंकणग मेय, पल्हव मालव मग्गर आभासिया) यूलि, १४९४४, भे ५६७१, मास, भ२, २माप४ (कणवीर ल्हसिय खसा) ४वी२, सि४, मस (खासिय णेदूर मोढडोंबिल गलओस पओस कक्कोय अवखाग हूणरोमग भमररूय चिलायविसय वासीय एवमाई) पासी, नवर.मौढ सि , समोस. अहोप य २१५॥1, दुप, शभ3, अभ२३त, Aिad, देशवासी विगैरे (से त्तं मिलिकख) २॥ या दो२७ छ ॥ सू. ३७
ટીકાઈ-હવે કર્મભૂમક મનુષ્યની પ્રરૂપણ કરે છે