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________________ प्रमेययोधिनी टीकी प्र. १ गॉ. ३ प्रशापनाख्यंमध्ययननिरूपणम् सन्नि ३१, संजमे चेव ३२, १२७॥६। ओही ३३, पवियारण ३४, वेदणाय ३५, तत्तो समुग्याए ३६॥७॥ तत्र प्रथमं पदं-प्रकरणं प्रज्ञापनाविषयकं प्रश्नमाश्रित्य प्रवृत्तत्वात् प्रज्ञापना १, एवं द्वितीयं पदं-प्रकरणं स्थानानि २, तृतीयं पदं वहुवक्तव्यम् ३, चतुर्थम् पदं स्थितिः ४, पञ्चमं पदं विशेपाख्यम् पाठ पदं व्युत्क्रान्ति:-गर्भप्राप्तिः व्युत्क्रान्ति लक्षणार्थाधिकारयुक्तत्वात् ६, सप्तमं पदम् उच्छ्वासः ७, अष्टमं पदं संज्ञा ८; नवमं पदं योनिः ९; दशमं पदं चरमाणीति चरमाणीति प्रश्नमधिकृत्य प्रवृत्तत्वात् १०, एकादशं पदं भापा ११, द्वादशं पदं शरीरम् १२, त्रयोदशं पदं परिणामः १३. चतुर्दशं पदं कपायः १४, पञ्चदर्श पदं पदमिन्द्रियम् १५. पोडशं पदं प्रयोगः १६, सप्तदशं पदं लेश्या १७, अष्टादशं पदं कायस्थितिः १८ एकोनविंशतितमं पदं सम्यक्त्वम् १९, 'विंशतितमं पदम् अन्तक्रिया २० एकविंशतितमं पदम् अवगाहना स्थानम् २१ द्वाविंशतितमं पदं निया २२. त्रयोविंशतितमं पदं कर्म २३, चतुर्विंशतितम पदं कर्मणो वन्धकः २४ तस्मिन् प्रकरणे यथा खलु जीवः कर्मणो वन्धको भवति तथा प्ररूपणात् कर्मवन्धक इति नाम कृतम्, एवमेव पञ्चविंशतितमं पदं कर्मवेदकः २५, पडूविंशतितमं पदं वेदस्य वन्धक इति २६; वेदयते-अनुभवतीति. आरंभ हुआ है । (२) स्थान (३) बहुवक्तव्य (४) स्थिति (५) विशेष (६)व्युत्क्रांति (उपपात निवारणादि) (७) उच्छवास (८) संज्ञा (९) योनि (१०) चरमाणि । क्योंकि यह पद 'चरमाणि' इस प्रश्न को लेकर आरंभ हुआ है' (११) भाषा (१२) शरीर (१३) परिणाम (१४) कषाय (१५)इन्द्रिय (१६) प्रयोग (१७) लेश्या (१८) कायस्थिति (१९) सम्यक्त्व (२०) अन्तक्रिया (२१) अवगाहना संस्थान (२२) क्रिया (२३) कर्म (२४) कर्म बंधक क्योंकि इस प्रकरण में बतलाया गया है कि जीव इस प्रकार कर्म का यंध कर्ता होता है, इसी प्रकार (२५) कर्मवेदक (२६) वेद-वन्धक इसमें बतलाया गया है कि कितनी प्रकृतियो का वेदन करता हुआ जीव कितनी प्रकृतियों का बंध करता है (२७ वेद वेदक धन धन मारलथयो छ. (२) स्थान (3) मयतव्य (४) स्थिति (4) विशेष (6) प्युठति (५५ात निवारण को२) (७) २७वास (८) संज्ञा (6) योनि (१०) चरमाणि भई २मा ५ने। 'चरमाणी' को प्रश्नने सान मारमा थयो छ (११) भाषा (१२) २२२ (१3) परिणाम (१४) पाय (१५) धन्द्रिय (१६) प्रयोग (१७) वेश्या (१८) ४ाय स्थिति (१८) सभ्यत्व (२०) मन्तयिा (२१) अपना संस्थान (२२) या (२३) ४ (२४) ४भ सन्यभ એ પ્રકરણમાં બતાવ્યું છે. કે જીવ આ રીતે કમને બન્ધ કર્તા બને છે, (૨૫) કર્મ વેદન (૨૬) વેદ-બન્ધક એમાં બતાવાયું છે કે કેટલી પ્રકૃત્તિઓને વેદન કરતે જીવ કેટલી પ્રવૃતિઓને અન્ય કરે છે (૨૭) વેદ વેદક એમા આ
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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