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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३३ परिसरस्थ लचरपञ्चेन्द्रियतियंग्योनिका ३८७ व्यतिकुलाः, चित्रलिनः मण्डलिनः मालिनः, अहयः, अहिशलाकाः, वासपताकाः, ये चान्ये तथाप्रकाराः, ते एते मुकुलिनः । ते एते अहयः । अथ के ते अजगराः अजगरा एकाकाराः प्रज्ञप्ताः । ते एते अजगराः। अथ का सा आसालिका ? कुत्र खलु भदन्त ! आसालिका संमूर्छति ? गोयमा ! अन्तो मनुष्यक्षेत्रे अर्द्ध- तृतीयेषु द्वीपेषु, निर्व्याघातेन पञ्चदशसु कर्मभूमिषु, व्याघातं प्रतीत्य महाविदेहेषु, (दिव्वागा) दिव्याक (गोणसा) गोनस (कसाहीया) कषाधिक (वइउला) व्यतिकुल (चित्तलिणो) चित्रली (मंडलिणो) संडली (मालिणो) माली (अही) अहि (अहिसलागा) अहिशलाका (वासपडागा) वासपताका (जे यावन्ने तहप्पगारा) और भी जो इसी प्रकार के हैं (से तं मउलिणो) यह सुकुली सों की प्ररूपणा हुई । (से तं अही) यह अहिसर्पो की प्ररूपणा पूरी हुई।
(से किं तं अयगरा ?) अजगर कितने प्रकार के हैं ? (एगागारा पण्णत्ता) एक प्रकार के कहे हैं (सेत्तं अयगरा) यह अजगर की प्ररूपणा हुई।
(से कि त आलालिया ?) आसालिया के कितने प्रकार हैं ? (कहि णं भंते आलालिया संमुच्छइ ?) कहां भगवन् ! आसालिया की उत्पत्ति होती है ? (गोयमा ! अंतो मणुस्सखित्ते) मनुष्य क्षेत्र के अन्दर (अडढाहज्जेस्ट दीयेसु) अढाई द्वीप में (निव्वाघाएणं) विना व्याघात के (पन्नरसस्तु) पन्द्रह (कम्मभूमिसु) कर्मभूमियों में (वाघायं पडुच्च) व्याघात से (पंचसु महाविदेहेसु) पांच महाविदेहों में (चक्कवहि खंधादिव्या (गोणसा) गोनस (फसाहिया) ४ाथि (वइउला) व्यतिरा (चित्तलिणो) यित्री (मंडलिणो) भी (मालिणो) भासी (अही) मा (अहिसलागा) मडि शता (वासपडागा) पासपता (जे यावन्ने तहप्पगारा) मीत पY रे मावी
तना छ (से तं मउलिणो) २॥ भुत३५ सोनी प्र३५ २७ (से त्तं अही) આ અહી–સર્પોની પ્રરૂપણા પુરી થઈ
(से कि तं अयगर।) म२ ३८प्रा२ना छ? (अयगरा) मगर (एगोगारा पण्णत्ता) ४४ रन ४ह्या छ (से त्तं अयगरा) मा मगरनी પ્રરૂપણ થઈ
(से किं तं आसालिया ?) -Ralleuneel andन छ ? (कहिणं भंते आसालिया संमुच्छइ १) भगवन् मासालियानी 6-पत्ति ४यां थाय छ ? (गोयमा अंतो मणुस्सखित्ते) 3 गौतम! मनुष्यक्षेत्रनी म-४२ (अड्ढाइज्जेसु दीवेसु) मध्यावीस दीपभा (निव्याघाएणं) व्याघात सिवायन (पन्नरससु) ५४२ (कम्मभूमिसु) ४म