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________________ प्रमेयबोधिनी टीका १.२ महाधीरस्वामिचन्दनकारणप्रदर्शनम् तत्र द्रव्यरत्नानि वैडूर्यमरकतेन्द्रनीलादीनि, भायरत्नानि च श्रुतव्रतादीनि, तत्र द्रव्यरत्नानि न तात्त्विकानि इति भावरत्नरिहाधिकारः, श्रुतान्येव रत्नानि श्रुतरत्नानि, न तु श्रुतानि च रत्नानि चेति, निधानमिव निधानम् , श्रुतरत्नानां निधानं श्रुतरत्ननिधानम्, केषां प्रज्ञापना क्रियते इत्यत आह-सर्वभावानाम् सर्वे च ते भावाश्चेति सर्वभावाः जीवाजीवपुण्यपापाश्रववन्धसंवरनिर्जरामोक्षाः, तथाहि-अस्यां प्रज्ञापनाया पत्रिंशत्पदानि सन्ति, तत्र प्रज्ञापना (१) बहुवक्तव्य (३) विशेष (५) चरम (१०) परिणाम (१३) संज्ञेषु पञ्चसु पदेषु जीवाऽजीवानां प्रज्ञापना, प्रयोगपदे (१६) क्रियापदे (२२) चाश्रवस्य, कायवाङ्मनः कर्मयोगः आश्रवः, कर्मप्रकृति पदे (२३) वन्धस्य, समुद्घातपदे (३६) केवलिसमुद्घातप्ररूपणायां संवरनिर्जरामोक्षाणां त्रयाणाम्, शेषेषु च स्थानादिषु (२) पदेषु क्वचित् कस्यचित्, अथवा सर्वभावानां तथा व्रत आदि भाव रत्न हैं । द्रव्य रत्न वास्तविक नहीं, उत यहां भाव रत्न समझना चाहिए श्रुत रत्न का अर्थ है, श्रुत रूप रत्न, श्रुत और रत्न, ऐसा अर्थ नहीं समझना चाहिए। प्रज्ञापना किसकी की जाती है इसका उतर है सर्व भावों की जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर बन्ध, निर्जरा और मोक्ष, ये भाव है । इस प्रज्ञापना सूत्र में छत्तीस पद में हैं, वे इस प्रकार हैं . (१) प्रज्ञापना (३) वह वक्तव्य (५) विशेष (११) चरम और (१३) परिणाम इस पांच पदों में जीव और अजीव की प्रज्ञापना है। (१६) प्रयोग पद और (२२) क्रियापद में आश्रव की (२३) कर्म प्रकृतिपद में बन्ध की (३६) समुदघात पद में केवली समुद्घात की प्ररूपणा में संवर निर्जरा और मोक्ष की, शेष स्थान आदि पदों में कहीं किसी की દ્રવ્ય રત્ન છે અને શ્રત તથા વ્રત આદિ ભાવરત્નો છે. દ્રવ્યરત્ન વાસ્તવિક નથી, તેથી અહીં ભાવરને સમજવાના છે. શ્રતરત્નને અર્થ છે, કૃતરૂ૫ રત્ન, શ્રત અને રત્ન એ અર્થ ન સમજવું જોઈએ. પ્રજ્ઞાપના કોની કરાય ? એને ઉત્તર છે–સભાની. જીવ અજીવ પુણ્ય पाप, माश्रय, सव२, पन्ध, नि२॥ भने मोक्ष, २ मा छे. २मा प्रज्ञापना सूत्र छत्रीस पहाभां छे. ते मा २ छ-(१) प्रज्ञापना, (3) मई पतव्य (५) विशेष (११) २२२म मने (१३) परिणाम - पांय पहीमा १ भने २04नी प्रज्ञापन छे. (१६) प्रयोग५४ मने (२२) छिया पहम माશ્રવની (૨૩) કમપ્રકૃતિ પદમાં બન્દની (૩૬) સમુદુઘાત પદમાં કેવલી સમુદ્દઘાતની પ્રરૂપણામાં સંવર નિર્જર અને મેક્ષના શેષ સ્થાન વિગેરે પદે
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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