SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञापनासूत्रे तिर्यग्योनिकाः द्विविधाः प्रज्ञताः, तद्यथा-चतुप्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियनिर्यग्योनिकाच, परिसर्पस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकाश्च । अथ के ते चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ? चतुप्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाश्चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-एकखुराः१, द्विखुराः २, गण्डीपढाः ३, सनखपदाः ४ । अथ के ते एकखुराः ? एकखुरा अनेकविधाः प्रजप्ताः तद्यथा-अश्याः, अश्वतराः, घोटकाः, गर्दभाः, गोरक्षराः, कन्दलका, श्रीचन्दलकाः, आवर्तकाः, ये चान्ये पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा पण्णत्ता) दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (चउपयथलयरपंचिंदिय०) चतुष्पद स्थलपरचलने वाले पंचेन्द्रिय तिथंच (परिसप्पथल०) और परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिथंच (से किंतं चउपयथल०) चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच कितने प्रकार के हैं ? (उबिहा पण्णता) चार प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (एगखुरा) एक खुर वाले (दुखुरा) दो खुरों वाले (गंडीपया) गंडीपद (सगफया) नाखून सहित पैरों वाले । ___(से किं तं एगखुरा?) एक खुर वाले कितने प्रकार के हैं ?) अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (अस्सा) अश्व (अस्सतरा) अश्वत्तर (घोडग) घोडा (गद्दभा) गधा (गोरक्खरा) गोरक्षर (कंदलगा) कन्दलक (सिरिकंदलगा) श्री कन्दलक (आवत्तगा) आवर्तक (जे यावन्ने तहप्पगारा) और जो इसी प्रकार के हैं (से तं एगखुरा) यह एक खुर चाले जीवों की प्ररूपणा हई। तिय योनि४ ७ ८ प्रा२न ४॥ छ ? (थलयरपचिदियतिरिक्खजोणिया) स्थस-य२ पश्यन्द्रिय तिर्थ यो (दुविहा पण्णत्ता) मे ४२॥ ४ा छ (तं जहा) ते २0 ४ारे छे (चउप्पयथलयरपंचिदिय०) यतुप४ स्थस-य२ स्थल ५२ याला थेन्द्रिय तियय (परिसप्प यल०) भने પસિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ __(से किं तं चउप्पय थल०) यतु०५४ स्थस-य२ पयन्द्रिय सा ना छ ? (चउप्पय थल०) तु०५६ २५सय२ ५ येन्द्रिय ४ (चउव्विहा पण्णत्ता) यार ४२॥ ४छ (तं जहा) तेसो पाशते (एगखुरा) से भरी ani (टु खुरा) मे भरीयो mi (गंडीपया) 1 डी५४ (साफया) नम साना पाण (से किं तं एगखुरा ?) २४ मरीज 21 ॥ छ ? (अणेग विहा पण्णत्ता) भने ४ ५२ना ४ा छे (तं जहा) तेसो २0 ४२ छ (अस्सा) ।। (अस्सतरा) ५२५२ (घोडग) 1 (गद्दभा) गधाड (गोरक्खरा) ॥२२२ (कंदलगा) ४१४ (सिरि कंदलगा) श्रीस (आवत्तगा) मावत (जे यावन्ने तहप्प.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy