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________________ प्रबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.२४ साधारणजीवलक्षणनिरूपणम् .३४५ ५ कीर्तिता, एतषामेकोनविंशति संख्यकानां त्वगादिषु मध्ये कस्यापि कांपि योनिः किमुक्ता भवति ? कस्यापि त्वग्योनिः कस्यापि छल्लीयोनिः कस्यापि प्रवालः) कस्यापि पत्रम्, कस्यापि पुष्पम्, कस्यापि फलम् कस्यापि मूलम्, कस्याप्यग्रम्, कस्यापि मध्यम्, कस्यापि बीजं योनि भवति, प्रकृतमुपसंहरन्नाह - 'से त्तं साहारण सरीर वायरवणस्सइकाइया' ते एते पूर्वोक्ताः साधारणशरीर वांदवनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ताः 'से त्तं वायरवणस्लइकाइया' - ते एते - उपर्युक्ताः वादरवनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ता, 'से त्तं वणस्स इकाइया' - ते एते - पूर्व दर्शिताः वनस्पतिकायिकाः प्रज्ञप्ता, 'सेतं एगिदिका' - ते एते - पूर्वोक्ता एकेन्द्रियाः प्रज्ञप्ताःः ।। सू०२४|| ” । (१३) शैवाल - सेवार (१४) कृष्णक (१५) पलक (१६) अवक (१७) कच्छ (१८) भाणी (१९) कन्दुक्य - एक साधारण वनस्पति । 2312 ऊपर बतलाई हुई उन्नीस वनस्पतियों की त्वचा, छाल, प्रवाल पत्र, पुष्प, फल, मूल, अग्र, मध्य और चीज में से किसी की कोई और किसी की कोई योनि होती है । तात्पर्य यह है कि किसी की योनि त्वचा है, और किसी की योनि छाल है, किसी की योनि प्रवाल हैं, किसी की पत्र, किसी की पुष्प, किसी की फल, किसी की मूल, किसी की अग्र, किसी की मध्य एवं किसी की योनि बीज है । S अब प्रस्तुत विषय का उपसंहार करते हैं - यह साधारणशरीर यादरवनस्पतिकायिक जीवों की प्ररूपणा हुई । इस प्ररूपणा के साथ साधारणशरीर वनस्पतिकायिकों की भी प्ररूपणा हो गई और साथ ही वनस्पतिकायिक जीवों की भी प्ररूपणा भी पूरी हुई । वनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा के साथ एकेन्द्रिय जीवों की भी प्ररूपणा हो चुकी ॥ ३४|| DAT ७५२- अतावेसी भोगलीश वनस्पतियानी, त्वया, छास, प्रवास यान, पुष्य, ण, સૂલ, અગ્ર, મધ્ય અને ખીજમાંથી કાઇની કાંઇ અને કાઇની કાંઇ ચેાતિ હાર્ય છે; 5 તાત્પય એ છે કે કાઇની ચેાનિ ત્વાચા છે, કેાઈની ચેાનિ છાલ કાઇની ચેત્તિ, પ્રવાલ કોઇની પત્ર કાઇની પુષ્પ, કાઇની ફળ, કાઇની મૂળ, કોઇની અગ્ર કાંઇની મધ્ય તેમજ કાઇની ચેાનિ ખીજ હાય છે. हवे प्रस्तुत विषयना उपसंहार पुरे छे मा साधारण 'शरीर मोटर - વન્નસ્પતિ કાયિક છવાની પ્રરૂપણા થઈ ગઈ અને સાથેજ વનસ્પતિકાયિક છવાની પ્રરૂપણા પણ પુરી થઈ, વનસ્પતિ કાયિકાની પ્રરૂપણાની સાથે એકુ. ન્દ્રિયઃ જીવાની પણ પ્રરૂપણુ થઇ ગઇ. ॥ સૂ. ૨૪૫ प्र० ४४
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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