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________________ ३१६ प्रज्ञापनास्त्र तानि स्निहुकानि (स्निहुपुष्पाणि) अनन्तजीवानि, यानि चान्यानि तथाविधानि ॥४i पद्मोत्पलिनी कन्दौ अन्तरकन्द स्तथैव, झिल्ली च । एते अनन्तजीवाः, एको जीवो विसमृणालयोः।।५।। पलाण्डुलशुनकन्दौ च, कन्दलीच कुस्तुम्बकः। एते परीतजीवाः, ये चान्ये तथाविधाः ॥६॥ पद्मोत्पल-नलिनानां, सुभगसौगन्धिकानां च । अरविन्द-कोकलदानां, शतपत्र-सहस्रपत्राणाम् ॥७॥ वृत्तं वाह्य पत्राणि च, कर्णिका चैव एकजीवस्य । अभ्यन्तरिकाणि पत्राणि, प्रत्येकं केसराणि मिञ्जाः ॥८॥ वेणुनडइक्षुवाटिका समासेक्षुश्च इक्कडः रण्डश्च । करकरः __(पउमुप्पलिणीकंदे) पद्मिनीकन्द उत्पलिनी कन्द (अंतरकंदे) अन्तरकन्द (तहेव) इसी प्रकार (झिल्ली य) झिल्ली नामक वनस्पति (एए) ये (अणंत जीवा) अनन्तजीव हैं (एगो) एक (जीवो) जीव (बिस मुणाले) नाल और कृणाल में। (पलंड) पलाण्ड कन्द (ल्हसुणकंदे य) लहसुन कंद (कंदली) कंदलीकंद (कुसुंवए) कुस्तुम्बक नामक वनस्पति (एए) ये (परित्तजीवा) प्रत्येक जीव हैं (जे याचन्ने तहाविहा) अन्य जो भी ऐसे हैं वे भी प्रत्येक जीव हैं। (पउमुप्पलनलिणाण) पद्मों, उत्पलों और नलिनों के (सुभगसोगधियाण य) सुभगों और सौगंधिकों के (अरविंदकुंकणाणं) अरविन्दों और कोकनदों के (सयपत्त सहसपत्ताणं) शतपत्रों तथा सहस्रपत्रों के (बिट) वृन्त इंठल (बाहिरपत्ता य) और बाहर के पत्ते (कणिया चेव) और कर्णिका (एगजीवस्त) एक जीव वाली है (अभितरगा) भीतरी (पत्ता) पत्ते (पत्तेय) प्रत्येक (केसरा) केसर (मिंजा) फल . (पउमुप्पलिणी कंदे) पमिनी ४६ पसि४६ (अंतरकंदे) मन्त२ ४६ '(तदेव) मेवी रीते (झिल्लीय) ही नामनी वनस्पति (एए) तेसा (विस मुणाले) ना मने भृक्षासमा " (पलडु) जी (ल्हसुणकंदे) स] ४-६ (कंदली) सी ४४ (कुसुमए) स्तु५४ नामनी वनस्पति (एर) रेया (पस्त्तिजीवा) प्रत्ये४ ७३ छे. (पउमुग्पलनलिणाण) पद्मी, Bua मने नसिमाना (सुभगसोगंधिकयाणयं 'य) सुलग गने सौगन्धिाना (अरविंदकु कणाण) अवि-हो तथा अनहोना (सयपत्त सहस्सपत्ताण) शतपत्र मने ससपत्राना (विट) वृन्त-312ीयां (बाहिरपत्ताय) अने. पडा२ना पान (कण्णिया चेव) मने ४ि (एगजीवस्स) એકે જીવ વાળી છે. - (अभिंतरगा) म १२ना (पत्ता) पत्र (पत्तेय) प्रत्ये४ (केसरा) स२ (मिजा) ३५
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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