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________________ प्रज्ञापनासूत्रे अयले भय भैरवाणं खंति मे परीसहोवसग्गाणं । 'देवेहिं कए महावीर' त्ति अचलो भयभैरवेषु क्षान्तिक्षमः परीपहोपसर्गाणां देवैः कृतं महावीर इति एतेन अपायापगमातिशयो व्यज्यते कीदृशं महावीर मित्याह- जिनवरेन्द्रम्जयन्ति-रागद्वेपादिरिपून् अभिभवन्ति इति जिना, ते च चतुर्विधाः श्रुतजिनाः, अवधिजनाः, मनः पर्यायजिनाः, केवलिजिना:, तेषु केवलिजिनतत्वप्रतिपत्त्यर्थे वरग्रहणम्, जिनानां वराः - श्रेष्ठाः अतितानागतवर्तमान माचस्वभाव स्वभावावभासि केवलज्ञानशालित्वात् । जिनवराः, ते चातीर्थकरा अपि सामान्यकेवलिनो भवन्ति " कहा भी है- भयानक भय उपस्थित होनेपर भी अचल रहने से तथा परीषहा और उपसगों को सहन करने में समर्थ होनेसे देवों ने महावीर यह नाम रक्खा । इस विशेषण के द्वारा भगवान् में अपायागम नामक अतिशय प्रकट किया है । महावीर कैसे हैं सो कहते हैं - वह जिनवरेन्द्र है । जो राग-द्वेष आदिरिपुओं को जोतते हैं, वे जिन कहलाते हैं । जिन चार प्रकार के होते हैं यथा - (१) श्रुतजिन (२) अवधिजिन (३) मनःपर्याय जिन और (४) केवल जिन । इनमेंसे महावीर केवलि जिन है, यह सूचित करने के लिए वर का प्रयोग किया गया है । जिनों में जो वर अर्थात् श्रेष्ट हो या भूत वर्त्तमान और भवि ध्यत् काल के समस्त पदार्थों को जानने वाले केवल ज्ञान से 'युक्त हो वे जिनवर कहलाते हैं । परन्तु ऐसे जिनवर तो सामान्य केवली भी કહ્યુ પણ છે કે——ભયાનક ભય ઉપસ્થિત થયે તે પણ અચલ રહેવાથી તેમજ પરીષહો તથા ઉપસર્ગાને સહન કરવામા સમ હોવાને લીધે દેવે એ મહાવીર એ નામ રાખ્યુ છે. આ વિશેષણથી ભગવાનમા અપાયાપ ગમ નામ ના અતિશય પ્રગટ કરાવે છે. મહાવીર કેવાછે તે કહે છે–તે જિનવરેન્દ્ર છે. જેએ રાગ, દ્વેષ આદિ શત્રુ भोने ते छे, तेथेो न उपाय है. नि यार प्रहारना होय छे - (१) श्रुतजुन (२) अवधिनिन (3) मनःपर्यायलन अने (४) देवसीलन मेगाभां भड्डावीर ठेवली कुन छे. मे सूचित ४२वा भाटे 'वर' पहनो प्रयोग यो छे. જિનામા જે વર અર્થાત્ શ્રેષ્ઠ હાય અગર ભૂત વમાન અને ભવિષ્યત્ કાળના સમસ્ત પદાર્થીના જાણુવા વાળા કેવલ જ્ઞાનથી યુકત હેાય તેએ જિનવર કહેવાય છે. પરન્તુ આવા જિનવર તેા સામાન્ય કેવલી પણ હાય છે કે
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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