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________________ ३१४ ___ प्रमापनासूत्रे ___मूलम्-चक्कागं भजमाणसस्स, गंठी चुन्नघणो भवे। पुढवि सरिसेण भेएण, अणंतजीवं वियाणाहि ॥१॥ गूढसिरागं पत्तं, सच्छीरं जं च होइ निच्छीरं । जंपि य पणटुसंधि, अणंतजीवं वियाणाहि ॥२॥ पुप्फा जलथलया, य विंटवद्धा य नालवद्धा य। संखिज्जमसंखिज्जा, वोद्धव्वाऽणंतजीवा य ॥३॥ जे केइ नालिया वद्धा, पुप्फा संखिज्जजीवया भणिया। निहुया अणंतजीवा, जे यावन्ने तहाविहा ॥४॥ पउमुप्पलिणीकंदे, अंतरकंदे तहेव झिल्ली य । एए अणंतजीवा, एगो जीवो विसमुणाले ॥५॥ पलंडुलसुणकंदे य, कंदली य कुसुंबए। एए परित्तजीवा, जे यावन्ने तहाविहा॥६॥ पउमुप्पलनलि.णाणं, सुभगसोगंधियाण य। अरविंद कुंकुणाणं, सयपत्तसहस्सपत्ताणं ॥७॥ विटं बाहिर पत्ता य, कन्निया चेव एगजीवस्स । अम्भितरगा पत्ता, पत्तेयं केसरा मिजा ॥८॥ वेणुनल इवखुवाडि य, समासइवखू य इकडे रंडे । करकरसुंठि विहंगू, तणाण तह पध्वगाणं च ॥९॥ अच्छि पव्वं बलिमोडओ य एगस्स होति जीवस्स। पत्तेयं पत्ताई, पुप्फाइं अणेगजीवाइं॥१०॥पूसफलं कालिंगं, तुंवं तउसेय एलवालुकं। घोसड़य पंडोलं, तिंदुयं चेव तेंदूसं ॥११॥ बिटसमं सकडाहं, एयाइं हवंति एगजीवस्स। पत्तेयं पत्ताइं, सकेसरं केसरं मिंजा ॥१२॥ सप्फाए सज्झाए, उठवेहलिया य कुहणकं दुक्के । एए अणंतजीवा, कंदुक्के होइ भयणाउ ॥१३॥सू०२२॥ ___ छाया-चक्रकं भज्यमानस्य, ग्रन्थिश्चूर्णघना भवेत् । पृथिवीसदृशेन भेदेन, छाल अधिक पतली हो, उस को प्रत्येकजीव समझना चाहिए । अन्य जो भी छाल इसी प्रकार की हो, उसे भी प्रत्येकजीव जानना चाहिए॥२१॥ शब्दार्थ--(चक्कागं) चक्र के आकार का (भज्जमाणस्स) तोडा છાલ એવી જાતની હોય, તેને પણ પ્રત્યેક જીવ સમજવી જોઈએ. એ સૂ. ૨૧ साथ-(चक्कांग) या २१२ना (भज्जमाणस्स) Hinामा माता (गंठी) is (चुन्नघणो) २०१ १२४ (भवे) डाय (पुढवी सरीसेणं) पृथ्वीना सामान
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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