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________________ २९४ प्रज्ञापनासूत्रे कृप्टि३७ रिति चापरा॥४॥ माषपर्णी३८ शुद्गयी ३९ जीवितरसह४० श्च रेणुका४१ चैव । काकोली४२ क्षीरकाकोली४३ तथा भङ्गी४४ नखी४५ इति।५। कृमिराशिः ४६ भद्रमुस्ता४७ लाङ्गलकी४८ पेलुका४९ इति कृष्णप्रकुल ५०श्च हढ५१ हरतनुका९२ चैव लोयाणी५३॥६॥ कृष्णः कन्दः५४ वनः (वनकन्दः) ५५ सूरणकन्द:५६ तथैव खल्लूर:५७। एतेऽनन्तजीवाः, ये चान्ये तथाविधा। तृणमूलं वंशीमूलमिति चापरम् । संख्याता असंख्याता वोद्धव्या अनन्तजीवाश्चा८। माठरी, (दंती) दन्ती, (इति) इस प्रकार, (चंडी) चण्डी, (किट्टित्ति) कृष्टि, (पावरा) और (दूसरी) ___ (मासपण्णी) भाषपणि, (सुग्गपण्णी) मुद्गपणी, (जीवियरसहे) जीवितरलह (य) और (रेणुया) रेणुका, (चेव) और (काओली) काकोली, (ग्वीरकाओली) क्षीरकाकोली, (तहा) तथा, (अंगी) भृगी, (नहीं) नवी, (इय) इस प्रकार, (किमिरासी) कृषिराशि, (भद्दनुच्छा) भद्रयुक्ता, (गंगलई) लांगलिकी, (पेलुगा) पेलुका, (इय) इस प्रकार (किण्हपउले) कृष्णपकुल, (हढ) हढ, (हरतणुया) हरतनुका (चेव) और (लोयाणी) लोयाणी, ___ (कण्हे कंदे) कृष्ण कन्द, (वज्जे) वज्रकन्द, (सूरणकंदे) सूरणकन्द, (तहेव) तथा, (खल्लूर) खल्लूर, (एए) ये पूर्वोक्त, (अणंतजीवा) अनन्त जीव वाले हैं। (जे यावन्ने तहाविहा) इनके अतिरिक्त अन्य जो इसी प्रकार के हैं । वे सब अनन्तजीवात्मक है। (मासपण्णी) भाषण (मुग्गपण्णी) भुगी (जीवीयरसहे) वित २४ (य) मन (रेणुया) २।४। (चेव) मने (काओली) सी (खीरकाओली) क्षीर सी (तहा) तथा (भंगी) भृगी (नही) नमी (इय) मा शते . (फिमिरासी) भिराशी (भदमुच्छा) समुस्ता (णंगलई) साली (पेलुगा) ४ा (इय) से शत (किण्ह पउले) ४८ ५८६ (हढ) ७८ (हरत गुया) उतनु (चेव) मने (लोयाणि) सोयाणी ___ (कण्हेकन्दे) 3. (बज्जे) १००४-४ (सूरणकते) सू२३ ४ (तहेव) तथा (खल्लर) मसू२ (एए) मा पूर्वारत (अणंत जीवा) मनत वा (जे यावन्ने तहा विहा) माना सिवायना मी मावा प्रा२ना छ. (तणमूल) तृणमूस (कंदमूले) ४४भूसा (वसीमूल) ५ शभूख (त्ति) ति (यावरे) भने मीत (संखिज्ज) संध्यात व पाय (असंखिज्जा) असे ज्यात छ। पाय (बोद्धव्या) तपा मध्ये (अणंत जीवा य) भने सन्त वाणां
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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