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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१९ सभेदवनस्पतिकायनिरूपणम् २८७ मूलम्-(गाहा) णाणाविहसंठाणा, रुक्खाणं एगजीविया पत्ता । खंधा वि एगजीवा, ताल-सरल-नालिएरीण।।३१।। जह सगलसरिसवाणं, लिलेसमिस्लाण वटिया बट्टी। पत्तेयसरी.. राणं, तह होति सरीरसंघाया ॥३१॥ जह वा तिलपप्पडिया, बहुएहिं तिलेहिं संहता संती । ____ पत्तेयसरीराणं, तह होति सरीरसंघाया ॥३३॥ से तं पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया ॥सू० १९॥ ___ छाया-'नानाविधसंस्थाना, वृक्षाणाम् एकजीवकानि पत्राणि । स्कन्धा अपि एकजीवाः, ताल-सरल-नालिकेरीणाम्॥३१॥ यथा सकलसर्पपाणां श्लेष्ममिश्राणां वर्तिका-वलिता-वर्ती । प्रत्येकशरीराणां तथेति शरीरसवाताः॥३२॥ यथा वा तिलपर्पटिका बहुभिस्तिलैः संहता सन्त । प्रत्येक शरीराणां तथा भवन्ति, शरीरसङ्घाताः ॥३३॥ ते एते प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिकाः ॥१० १९॥ - शब्दार्थ-(णाणाविह संठाणा) अनेक प्रकार की आकृति वाले (रुक्खाणं) वृक्षों के (एगजीविया) एक जीवबाले (पत्ता) पत्ते (खंधा वि) स्कंध भी (एगजीवा) एक जीव वाले (ताल सरल नालिएरीणं) ताल, सरल और नलियेरी के ॥३१॥ (जह) जैसे (सगलसरिसवाणं) सकल सरसों की (सिलेसमिस्साण) श्लेष द्रव्य से मिलाए हओं की (वट्टिया) वत्ती (विट्टी) एकरूप (पत्तेयसरीराणं) प्रत्येकशरीर वालों के (तह) उसी प्रकार (हति) होते हैं (सरीरसंघाया) शरीरों के संघात । (जह) जैसे (वा) अथवा (तिलपप्पडिया) तिलपापडी (बहहिं) बहुत (तिलएहिं) बहुत से तिलों से (संहता) मिलीन (संघी) होकर (पत्तेयसरीराणं) प्रत्येकशरीर शहाथ-(णाणाविह संठाणा) मने प्रा२नी पातिवा (रुक्खाणं) वृक्षाना (एगजीविया) से 9t (पत्ता) ५६i (खंधावि) २४५ ५ (गजीवा) मे वाण. (ताल सरलनालएरीणं) तास, स२८, २मने नारि ॥ ३१ ॥ (जह) २ (सगलसरिसवाणं) स४ सरसोनी (सिलेसमिस्साण) श्वेष द्रव्याथी भेगवेवासानी (वट्टिया) यत्ति (विट्टी) मे ३५ (पत्तयसरीरा) प्रत्ये४ . शशरणाना (तह) तवी शत (होति) थाय छे (सरीरसंशया) शरी२ संघात.. (जह) २१। (वा) 42वा (तिलपप्पडिया) तस५५७१ (पहूहि) u (तिलएहिं) तसाथी (संहता) भणेस (संती) पनीर २९ छ (पत्तेयसरीराणं) प्रत्ये: शरीर वाना (तह) मे शते (होंति) उत्य छे (सरीरसंघाया) शरीराना सघात डाय छ,'
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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