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________________ प्रमापनासूत्रे द्धानि एव सन्ति, एवमेव 'जे यावन्ना तहप्पगारा' ये चाप्यन्ये तथा प्रकाराः-एवं• विधाः पदार्थी सन्ति तेऽपि सर्वे जलरुहपदेन व्यपदेश्या भवन्ति, प्रकृतं जलरुहमुपसंहरम्नाह–से तंजलरुहा' ते एते पूर्वोक्ताः पविंशतिभेदा जलरुहाः प्राप्ताः । मूलम्-से किं तं कुहणा? कुहणा अणेगविहा पण्णत्ता, त जहाआए१ काएर कुहणे३ कुणके४ वहलिया५ सफाए सज्झाए७ छत्तोए८ वंसीण९ हिताकुरए१०। जे यावन्ने तहप्पगारा । से तं कुहणा। १२॥ छाया-अथ के ते कुहणाः कुहणा अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-आयं १ कार्यर कुहणं३ कुनकं४ द्रव्यहलिकां५ शफायः६ स्वध्याय:७ छत्रोकः८ वंशीनं९ हिताकुरकम्, ये चान्ये तथाप्रकाराः । त एते कुहणाः ॥१२॥ रुह कही गई हैं । ये सब प्रायः प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त इसी प्रकार की अन्य वनस्पतियां जो जल में उत्पन्न होती हैं, सभी जलरुह कहलाती हैं। अब उपसंहार करते हैंयह जलरुह की प्रज्ञापना हुई । यहां इनके छब्बीस प्रकार गिनाए हैं। शब्दार्थ-(से किं तं कुणा) कुहण वनस्पति कितने प्रकार की हैं ? (अणेगविहा) अनेक प्रकार की (पण् गत्ता) कही है (तं जहा) वह इस प्रकार है । (आए) आय, (काए) काय, (कुहणे) कुहण, (कुणक्के) कुनक्क, (दव्यहलिया) द्रव्यहलिका, (सफोए) शफाय, (सज्झाए) स्वाध्याय (छत्तोए) छत्रोक, (वंसीण) वंशोन, (हिताकुरए) हिताकुरक (जे यावन्ने तहप्पगारा) इसी प्रकार की जो अन्य हैं । (से तं कुहणा) यह कुहण कहे गए हैं। જત્પન્ન હોવાથી જલરૂહ કહેલી છે. આ બધી વનસ્પતિ મોટે ભાગે પ્રસિદ્ધ છે. એના સિવાય એવી જાતની અન્ય વનસ્પતિ જે પાણીમાં પિટા થાય છે તે બધી જલરૂહ કહેવાય છે. હવે ઉપસંહાર કરે છે–આ જલરૂહની પ્રજ્ઞાપના થઈ. અહીં તેના છવીસ પ્રકાર ગણાવ્યા છે. हाथ-(से कि तं कुहणा) ७ वनस्पति या प्रा२नी छ (कुहणा) '७५ (अणेगविहा) मने प्रा२नी (पण्णत्ता) ४ही छ (त जहा) तेसो सारे छ (आए) माय (काए) आय (कुहणे) (कुणक) हुन४४ (दबहलीया) द्रव्य'ति (सफाए) शाय (सझाए) स्वाध्याय (छत्तोए) छत्रा४ (वंसीण) सीन (हिताकुरए) हिता२४ (जे यावन्ने तएपगाररा) मेवी ततनी २ मी वन२५तिया छ (से त्तं कुहणा) मा ४५ उपाय छे.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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