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________________ प्रमेयबोधिनो टीका सू। १ मङ्गलाचरण प्रयोजनमदर्शनम् ... . तं मंगलमाईए मज्झं पज्जतए य सत्थस्स । पढमं सत्थत्था विग्घपारगमणाय निद्दिष्टं ॥१॥ तस्सेव थेज्जत्थं मज्झिमयं अंतिमंपि तस्सेव। अवोच्छित्तिनिमित्तं सिस्स पसिस्लाइवसस्स ॥२॥ तन्मङ्गलमादी मध्ये पर्यन्ते च शास्त्रस्य । प्रथमं शास्त्रार्थाविघ्नपारगमनाय निर्दिष्टम् ॥१॥ तस्यैव च स्थैर्यार्थ मध्यमन्त्यमपि तस्यैव । अव्युच्छित्तिनिमित्तं शिष्यप्रशिष्यादि वंशस्य ।।२।। इति, तत्र-प्रथमपदगतेन-'वक्रायजरामरणमये' इत्यादिना, ग्रन्थे शास्त्रकारेण अदिमङ्गलं कृतम्, तत्र जिनरूपेष्टदेवतास्तवनस्य परममगलत्वात्, उपयोगपदगतेन-'कविहेणं भंते ! उवओगे पण्णत्ते' इत्यादिना मध्यममङ्गलं कृतम् उपयोगस्य ज्ञानलक्षणत्वात्. ज्ञानस्य च कर्मक्षयं प्रति प्रधानहेतुतया मङ्गलत्वात्, लिए और अन्तिम संगल का प्रयोजन यह है कि शिष्य-प्रशिष्य की परम्परा चालू रहे और शास्त्र विच्छिन्न न होने पावे। कहा भी है-'मंगल शास्त्र की आदि में, मध्य में और अन्त में किया जाता है । प्रथम अर्थात् आदि मंगल विना किसी विघ्न के शास्त्र के पार गमन के लिये कहा गया है ॥१॥ _मध्य मंगल शास्त्र के अर्थ की स्थिरता के लिए है और अन्त्य मंगल शिष्य प्रशिप्य की परम्परा का विच्छेद न होने के लिए होता है ।। यहां प्रथम पद के प्रारंभ में 'वक्गय जरमरणभये, इत्यादि शब्दों द्वारा शास्त्रकारने आदि मंगल किया है। क्योंकि अपने इष्ट देव जिनेन्द्र का स्तवन करना परम मंगल रूप है। उपयोग पद में "भगवन्' उपयोग कितने प्रकार का है ? इत्यादि के द्वारा मध्य संगल किया गया है, क्योंकि उपयोग ज्ञानरूप है और કરાય છે પ્રથમ અર્થાત્ આદિ મગલ કેઈપણ વિઘન સિવાય શાસ્ત્રની પરિપૂता भाटे ४३ छ ॥ १ ॥ મધ્યમ ગલ શાસ્ત્રના અર્થની સ્થિરતા માટે છે અને અમંગલ શિષ્ય પ્રशिष्योनी ५२ ५२१ नो विच्छे न थवा भोट हाय छ ॥ २ ॥ ही मा प्रथम पटना प्रारममा (ववगयजरमरणभये) विगेरे हो । "શાસ્ત્રકારે આદિમ ગલ કર્યું છે. કેમકે પિતાના ઇષ્ટદેવ જીનેન્દ્રનું સ્તવન કરવું પરમ મ ગલ રૂપ છે. ઉપગ પદમા” ભગવદ્ ઉપયોગ કેટલા પ્રકારનો છે? વિગેરે પ દ્વારા મધ્ય મ ગલ કરાયું છે. કેમકે ઉપગ જ્ઞાનરૂપ છે અને જ્ઞાન
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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