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________________ २५६ प्रज्ञापनासूत्रे 'कंदा वि, खंधा वि, शाला वि' कन्दा अपि, स्कन्धा अपि, गाला अपि-शाखा अपि, असंख्येयजीवात्मका भवन्ति, 'पत्ता पत्तेय जीविया' बहुवीजकवृक्षाणां पत्राणि प्रत्येकजीवकानि भवन्ति, 'पुप्फा अणेग जीविया' पुप्पाणि तु तेपाम् अनेकजीवात्मकानि भवन्ति, 'फला बहुवीयगा' फलानि तेषां बहुवीजकानि प्रकृतमुपसहरम्नाह- से तं बहुवीयगा' ते एते-पूर्वोक्ताः, बहुवीजकाः वृक्षाः प्रज्ञप्ताः, प्रकृतमुपसंहनाह- से तं रूक्खा'-ते एते-पूर्वोक्ताः, वृक्षा एकास्थिकाः, बहुवीजकाश्च प्रज्ञप्ताः। मूलम्-से किं तं गुच्छा ? गुच्छा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहावाइंगणि सल्लइ धुंडई य तह कत्युरी य जीभुमणा। बैवी आढइ णीली, तुलसी तहमाउलिंगीयाचा कच्छंभरि पिपलिया अंतसी बिल्ली य कोइमाईया । वुच्छ्रे पडोलेकंदे विउठवा वत्थलंदेरे॥९॥ पत्तउर सीयउरएँ हवइ तहा जैवसए य बोद्धव्वे । णिग्गुं मियंगै तैबरि, अत्थई चेव तल उदाडा ॥१०सण पाणं कासँ मुद्दगै. अंग्घाडग साम सिंधुवारे य। करमद अदडू सँग कॅरीर एरावण महित्थे ॥११ जाउलग मोलैं परिली, गयमारिणि कुँव्वकारिया भंडा। जीइ केयँइ, तह गंज पाडली दसि अंकोले ॥१२॥ जे यावन्ने तहप्पगारा । से तं गुच्छा ।। जीवात्मक होते हैं । इनके कन्द भी और शाखाएं भी असंख्य जीवात्मक हैं। पत्ते एक एक जीवरूप होते हैं । पुष्प अनेक जीवात्मक होते हैं। फल तो बहुत बीजों वाले हैं ही । अब उपसंहार करते हैं-यह बहुवीजक वृक्षों की प्ररूपणा हुई और साथ ही मृल भेदों में ले. वृक्ष की प्ररूपणा पूरी हुई। ॥२०॥ शब्दार्थ-(से किं तं गुच्छा) ? गुच्छ कितने प्रकार के हैं ! (अणेगકન્દ અને શાખાઓ પણ અસ ખ્ય જીવાત્મક છે પાદડા એક એક જીવ રૂપ હોય છે. પુપ અનેક જીવાત્મડ હેય છે. ફળ ઘણુ જી વાળા છે જે હવે ઉપસ હાર કરે છે–આ બહુ બીજક વૃક્ષની પ્રરૂપણા થઈ અને તે સાથે મૂળ ભેમા વૃક્ષની પ્રરૂપણા પુરી થઈ છે शहाथ-(से कि त गुच्छा) गुग्छ । सरना छ ? (गुच्छा) शु२७.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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