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________________ प्रजापनासूत्रे २५२ ', " तं एगडिया?' 'से' - अथ, ''के के कतिविधा इत्यर्थः 'एडिया' एकास्थिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'एटिया अणेगविद्या पण्णना' एकास्थिकाः, अनेकविधाः नानाप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः तानेव गाधायेणाह - 'तं जहा ' तद्यथाऽवियुकोसंव 'साल अंकुल्ल पीलु सेन्हय । सल्यइ सोय मालय उपासे करंजे ||१२| "निम्बाम्र जम्बू कोशाम्र गालाकोट पीलुगेध | सल्की मोचकी मान्दुक कुट "पलाशा: करज्जव' तत्र - निम्बः प्रसिद्धः रसवृक्षः, आम्रवृताः, जम्ब:- कपायरस "विशिष्टवृक्षः कोशान्त्रः - तनामकवृक्षविशेषः, शान्त्रः - सर्जः, अङ्कोट:-वृक्षविशेषः, 'अखरोट पदवाच्यः, पिदु: - वृक्षविशेषः प्रसिद्धः, गेल:- श्लेमानकः, सल्लकीहस्तिप्रिया, मोचकी - देशविशेषे प्रसिद्धा, मादक:-अयमपि देशविशेषे प्रसिद्ध, चकुल:- केसरः, पलाशः - किशुकः, करञ्ज:- नक्तमालः, 'पुत्तंजीवयऽरिहे विदेलए हरिडए य भिल्लाए | उंबेभरिया सीरिणि बोद्धव्वे धायड़ पियाले || १३ || पुत्रजीवकारिष्ट विभीतकाः, परीकथ, भलातक उम्मरिका क्षीरणी चोद्धव्या, धातकी प्रियाल:' तत्र-पुत्रजीवक:- देशविशेषे प्रसिद्धः 'पितौझिया' इति भाषाटीकार्थ-अ - अब एकास्थिकों की प्ररूपणा करते हैं- एकास्थिक वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं ? भगवान् ने कहा- एकास्थिक वृक्ष नाना प्रकार के होते हैं । उनका आगे तीन गाथाओं में कथन करते हैं । वे इस प्रकार हैं- नीम, आम, जामुन (कपाय रस वाला एक वृक्ष प्रसिद्ध है) कोशम्ब, शाल (साज), अंकोट, जिसे अखरोट कहते हैं, पीलु, शेड (इलेष्मातक ), सल्लकी (हनिप्रिया), मोचकी, जो किसी देश में प्रसिद्ध है, मालक, यह भी देश विशेष में प्रसिद्ध है, वकुल- केसर, पलाग ( खाखरा), करंज - नक्तमाल, पुत्रजीवक (देश विशेष में प्रसिद्ध, जिसे ( पितौझिया कहते हैं) अरिष्ट (अरीठा) विभीतक (बहेडा), हरीतक ( हरड, यह कोंकण देश में प्रसिद्ध है), भल्लातक ( भिलावा), उम्बेभरिया (यह लोक प्रसिद्ध है), क्षीरणी (खिरनो), घातकी, पियाल, હવે એકાસ્થિકાની પ્રરૂપણા કરે છે-એકાસ્થિવ્રુક્ષ કેટલા પ્રકારના છે ? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે-એક્સસ્થિવ્રુક્ષ નાના પ્રકારના હેાય છે. તેઓનુ` ऋणु गथासोमा ४थन ४ छे. ते या प्रारे छे-सी मडो, भामो, न मु (तुराश वाणु वृक्ष) अशम, शाद, अोहा (जैने ममरोट हे छे) पीलु, शेड, सडसडी भोयीने देशभां प्रसिद्ध छे. भाजुङ, महुस - प्रेसर, पाश-मायरी, ४२०४-नहुत भात, पुत्र, भरिप्ड (मरीहा) बिलीत: -मेडा, हरीत - हरडे, असात (लीसामु ) अश्मेलरीया, क्षीरणी, धातडी, पियास, यूतिए, सी जडो, ४२४, 'सक्षणा, शिशया, असन (गाउन) युन्नाग-पुस्प्रेसर, नागवृक्ष, श्रीपि અશેક (આ બધા લેાક પ્રસિદ્ધ છે.)
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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