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________________ ર૪૨ प्रशापनासूत्रे काइया ।से किं तं वायरवणस्लइकाइया ? वायरवणस्तइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पत्तेयसरीर वायरवणस्सइकाइया य, साहारणसरीर बायरवणस्तइकाइया य ॥सू०१८॥ छाया-अथ के ते वनस्पतिकायिकाः ? वनस्पतिकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च, वादरवनस्पतिकायिकाश्च । अथ के ते सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः ? सूक्ष्मवनस्पतिकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकसूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च, अपर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च । ते एते सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाः । अथ के ते वादरवनस्पतिकायिकाः १ वादरवनस्पतिकायिका शब्दार्थ-(से किं तं वणस्सइकाइया) वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नता) कहे गए हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (सुहुमवणस्सइकाइया य) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और (वायरवणस्सइकाइया य) बादर वनस्पतिकाधिक (से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया ?) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा) दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पजत्तगसुहमवणस्सइकाइया य) पर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिक और (अपज्जत्तगसुहमवणस्सइकाइया) अपर्याप्तक सूक्ष्मवनस्पतिकायिक (सेत्तं सुहमवणस्सइकाइया) यह सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा हुई। (से किं तं बायरवणस्सइकाइया) बादरवनस्पतिकायिक कितने प्रकार के हैं ? (बायरवणस्सइकाइया) बादरवनस्पतिकायिक (दुविहा) दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तंजहा) वे इस प्रकार (पत्तेयसरीरबायरवणस्सइ शहाथ-(से किं तं वणस्सइकाइया) पनपति यि सामान छ (वणस्सइकाइया) वनस्पति यि४ ०१ (दुविहा) मे ४२॥ (पन्नत्ता) ४ह्या छ (तं जहा) तेस। २मा प्रारे छे (सुहुमवणस्सइकाइया य) सूक्ष्म वनस्पति यि भने (वायरवणस्सइकाइया य) ॥१२ वनस्पतिशायि४ (से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया) सूक्ष्म वनस्पतिय छ। टा प्रा२ना छे ? (सुहुमवणस्साइकाइया) सूक्ष्म वनस्पतिशायि । (दुविहा) मे. प्रशासन (पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) तमाम प्रारे (पज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य) पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पति यि मन (अपज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया) अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पति (से तं सुहुमवणस्सइकाइया) मा सूक्ष्म वनस्पतियिोनी ५३५। २४. __(से कि त वायग्वणस्सइकाइया) ४२ वनस्पति यि सी तना छ ? (बायरवणस्सइकाइया) मा४२ वनस्पतिय (दुविहा) में प्रा२ना (पण्णत्ता) ॥ छ (तं जहा) तेसो मा ४ारे (पत्तेयसरीर वायरवणस्सइकाइया य) प्रत्येय
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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