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________________ २२४ प्रमापनासूत्रे समासतो द्विविधाः प्रज्ञताः, तद्यथा-पर्गप्तकाश्च अपर्याप्तकाच, तत्र खलु ये ते अपर्याप्तका स्ते खलु असंप्राप्ताः । तत्र खलु ये ते पर्याप्तताः एनेपां वर्णादेशेन गन्धादेशेन रसादेशेन स्पर्यादेशेन सहसाग्रशो विधानानि, संख्येयानि योनि प्रमुख शतसहस्राणि, पर्याप्तकनिश्रया अपर्याप्ता व्युत्क्रामन्ति, यत्रेकस्तत्र नियमात् असंख्येयाः । ते एते बादगाकायिकाः । ते एते अप्कायिकाः ।। सू० १५॥ (जे यावन्ने) अन्य जो भी (तहप्पगारा) इसी प्रकार के (ते) वे (समासओ) संक्षेप ले (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पजतगा य) पर्याप्तक (अपज्जत्तगा य) और अपर्याप्तक (तत्थ णं) उनमें से (जे ते अपज्जत्तगा) जो अपर्याप्त हैं (ते णं) वे (असंपत्तो) असंप्राप्त हैं (तत्य णं) उनमें से (जे ते एज्जत्तगा) जो पर्याप्त हैं (एतेसिं) इनके (वण्णादेसेणं) वर्ण की अपेक्षा से (गंधा देसेणं) गंध की अपेक्षा ले (रसादेलेणं) रस की अपेक्षा से (फासादेसेणं) स्पर्श की अपेक्षा से (सहस्सरासो) हजारों (विहाणाई) भेद हैं (संखेज्जाइं) संख्यात (जोणियप्पमुहसयसहस्साई) लाख योनि प्रमुख हैं (पज्जत्तगनिस्लाए) पर्याप्तक जीव के आश्रय से (अपज्जत्तगा) अपर्याप्तक (वक्कमंति) उत्पन्न होते हैं (जत्थ) जहाँ (एगो) एक (तत्थ) वहां (नियमा) नियम से (असंखेज्जा) असंख्यात हैं (से तं यायर आउकाइया) यह वादर अकाय की प्ररूपणा हुई (से तं आउकाइया) यह अप्काय की प्ररूपणा हुई ॥१६॥ (ये यावन्ने) मन्य रे ४५ (तहप्पगारा) मा प्रा२ना हाय (ते) तेस। (समासओ) स२५थी (दुविहा) मे ४२ना (पग्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) ते मा प्रारे (पज्जत्तगा) पर्यात (अपज्जत्तग्गा य) मने पर्याप्त (तत्थ णं) तेसोमाथी (जे ते अपज्जत्तगा) 2 अपर्याप्त छ (ते ण) तेस। (असंपत्ता) मसात छ (तत्यणं) तेगामाथी (जे ते पज्जत्तगा) 2 पर्याप्त छ. (एएसिं) मेमना (वण्णादेसेगं) पर्षनी अपेक्षाथी (गंधादेसेण) धनी अपेक्षा (रसादेसेणं) २सनी अपेक्षाये (फामादेसेण) २५शनी अपेक्षा (सहस्सग्गसो) । (विहाणाई) ले छे (मखेजाई) संन्यात (जोणियापमुहसय सहस्साई) 14 योनि प्रभु छ (पज्जत्तगनिस्साए) पर्याप्त नी माश्रये (अपज्जत्तगा) PA५४ (वक्कमंति) S५न्न थाय छे. (जत्थ) न्या (ग्गो) ४ (तत्थ) या (नियमा) नियमयी (असंखेज्जा) मस-यात छ (से तं वायरआउकाइया) मा मा२ २४ायनी प्र३५॥ थ/ (सत्तं आउकाइया) 22. २५.४ायनी प्र३५॥ २७ ॥ सू. १५ ॥
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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