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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१४ जीवप्रज्ञापना .. ' . टीका-अथ पृथिवीकायिकतत्त्वं जिज्ञासमानः पृच्छति-'से किं तं पुढविकाइया ?' 'से' अथ 'किं तं' के ते कतिविधाः पृथिवीकायिकाः प्रेज्ञप्ताः ? कथिताः? भगवानाह-'पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता' पृथिवीकायिकाः द्विविधाः-द्विप्रकारा: अंज्ञप्ताः-उक्ताः 'तं जहा-मुहुमपुढ विकाइया य, वायरपुढविकाइया य' तद्यथासूक्ष्मपृथिवीकायिकाश्च वादरपृथिवीकायिकाश्च, तत्र सूक्ष्मनामकर्मोदयात् सूक्ष्मा, सूक्ष्माश्च ते पृथिवीकायिकाश्चेति सूक्ष्मपृथिवीकायिकाः, बादरनामकर्मोदयाद् बादराः, बादराश्च ते पृथिवीकायिका:-वादरपृथिवीकायिकाः, एतयोश्च सूक्ष्मबादरत्वयोः कर्मोदयजन्यत्वेन बदरामलकयोरिख नापेक्षिकत्वं चकारद्वयन्तु होते हैं (जत्थ) जहां (एगो) एक (तत्थ) वहां (नियमा) नियम से (असखेजा) असंख्यात । " (से तं खरवायरपुढविकाइया) यह खरवादरपृथ्वीकायिकों की प्रज्ञापना हुई (से तं बायरपुढविकाइया) बादरपृथ्वीकायिकों की प्रज्ञापना हुई (सेत्तं पुढविकाइया) यह पृथ्वीकायिकों की प्रज्ञापना हुई ॥१४॥ टीकार्थ-अब शिष्य पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में जिज्ञासा करता हुआ प्रश्न करता है-पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे है ? भगवान् उत्तर देते हैं-पृथिवीकायिक जीव दो प्रकार के कहें गए हैं। वे इस प्रकार हैं-सूक्ष्मपृथिवीकायिक और बादर पृथिवीकायिक । जिन जीवों को सूक्ष्मनामकर्म का उदय हो वे सूक्ष्म कहलाते हैं। ऐसे पृथिवीकायिक जीव सूक्ष्मपृथिवीकायिक हैं । जिनको बाँदरनामकर्म का उदय हो वे घादर कहलाते हैं। ऐसे पृथिवीकायिक बादपृथिवीकायिक कहे गये हैं । बेर और आंवले में जैसी सूक्ष्मता और बादरता है, वैसी (से 'तं खरवायर पुढवविकाइया) २॥ ५२ ॥४२ पृथ्वीयानी प्रज्ञपना ५५ (से तं बायरपुढविकाइया) ॥४२ पृथ्वीयानी प्रज्ञापन। थ/ (से चं पुंढविकाईया) ॥ पृथ्वी थि४ वानी प्रशायना २४. ॥ सू. १४ ॥ ટીકાઈ–હવે શિષ્ય પૃથ્વી કાયિક જીના વિષયમાં જીજ્ઞાસા કરીને પ્રશ્ન કરે છે–પૃથ્વીકાયિક જીવ કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે. જે શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે–પૃથ્વી કાયિક જીવ બે પ્રકારના કહેલા છે. તેઓ આ પ્રકારે છે. સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક અને બાદર પૃથ્વીકાયિક. જે જીવોને સૂમ નામ કર્મને ઉદય થાય તેઓ સૂમ કહેવાય છે. એવા પૃથ્વીકાયિક જીવ સૂમ પૃથિવીકાયિક છે. જેમને બાહર નામ કર્મને ઉદય હોય તેઓ બાદર કહેવાય છે. એવા પૃથ્વીકાયિક બાદર પૃથ્વીકાયિક કહેવાય છે.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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