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________________ १६८ - प्रज्ञापनासूत्र परम्परासिद्धासंसारसमापन्नजीव प्रज्ञापना ? च । अथ का सा अनन्तरसिद्धासंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ? अनन्तरसिद्धासंसारसमावण्णजीवप्रज्ञापना पश्चदशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-तीर्थसिद्धा१, अतीर्थसिद्धा२, तीर्थकरसिद्धा३, अतीर्थकरसिद्धा४, स्वयंबुद्धसिद्धा५, प्रत्येकवुद्धसिद्धा६, बुद्धवोधितसिद्धा७, स्त्रीलिङ्गसिद्धा८, पुरुपलिङ्गसिद्धा९, नपुंसकलिङ्गसिद्धा१०, स्वलिङ्गसिद्धा११, अन्यलिङ्गसिद्धा१२, गृहिलिङ्गसिद्धा१३, एकसिद्धा१४, अनेकसिद्धा१५। सा अनन्तरसिद्धासंसार सारसमापन्नजीवप्रज्ञापना दो प्रकार की (पण्णत्ता) कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (अणंतरसिद्ध असंसारसमावन्नजीवपन्नवणा) अनन्तर सिद्ध-प्रथमसमयसिद्ध मुक्त जीवों की प्ररूपणा (य) और (परंपरसिद्धअसंसार समावण्णजीवपण्णवणा) परम्परा सिद्ध सुस्त जीवों की प्ररूपणा (से किं तं अणंतरसिद्ध असंसार समावण्णजीवपण्णवणा?) अनन्तरसिद्ध मुक्त जीवों की प्रज्ञापना क्या हैं ? वह (पण्णरसविहा) पन्द्रह प्रकार की (पण्णत्ता) बताई है (तं जहा) वह इस प्रकार (तित्थसिद्धा) तीर्थसिद्ध (अतित्थसिद्धा) अतीर्थसिद्ध (तित्थगरसिद्धा) तीर्थकरसिद्ध (अतित्थगरसिद्धा) अतीर्थकरसिद्ध (सयंवुद्धसिद्धा) स्वयंवुद्धसिद्ध स्वयं बोध करके सिद्ध हुए (पतेयवुद्धसिद्धा) प्रत्येक बुद्ध सिद्ध (बुद्धबोहियसिद्धा) बुद्ध बोधित सिद्धः (इत्थीलिंगसिहा) स्त्रीलिंग सिद्ध (पुरिसलिंगसिद्धा) गुरुपलिंग सिद्ध (नपुंसगलिंगलिहा) नपुंसक लिंग (सलिंगसिद्धा) स्वलिंगसिद्ध (अन्नलिंगसिद्धा) अन्यलिंगसिद्ध (गिहि. लिंगसिद्धा) गृहस्थलिंगलिद्ध (एकसिद्धा) अकेलेसिद्ध (अणेगसिद्धा) ४।२नी (पण्णत्ता) ४ो छ (तं जहा) ते २0 ते (अणंतरसिद्धअसंसारसमावन्न जीवपण्णवणा) मन-त२ सिद्ध-प्रथम समयसिद्ध मुद्रत योनी प्र३५७॥ (य) मने (परंपरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) ५२ ५२१ सिद्ध भुत योनी ५३५ए। (से कि त अणंतरसिद्ध असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) मनन्तरसिद्ध भुत यानी प्रज्ञायना शुछ १ (पण्णरसविह.) ते ५४२ प्रा२नी (पग्णत्ता) तावी छ (त जहा) ते 20 रीते छ (तित्यसिद्वा) तीथ सिद्ध (अतित्थसिद्धा) २मतीथ सिद्ध (तित्थगरसिद्वा) ती ४२ सिद्व (अतित्थगरसिद्धा) मतीर्थ ४२ सिद्व (सर्वबुद्धसिद्धा) २१य माय पामीन सिद्ध थयेसा (पत्तेयबुद्वसिद्धा) प्रत्ये४ मुद्ध सिद्ध (बुद्धबोधियसिद्धः) मुद्ध माथित सिद्ध (इथिलिंगसिद्धा) स्त्री सि सिद्ध (पुरिस लिंगसिद्धा) पुदि सिद्ध (नपुंसकलिंगसिद्धा) नससि सिद्ध (सलिगसिद्धा) - स्पति सिद्ध (अन्नलिंगसिद्धा) अन्य वि सिद्ध (गिहिलिंगसिद्धा) शृश्य
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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