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________________ प्रमेययोधिनी टीका प्र. पद १ सू.९ रूपी अजीवप्रज्ञापना । १५३ अपि२। रसतस्तिक्तरसपरिणता अपि१, कटुकरसपरिणता अपि२, कपायरसपरिणता अपि३, अम्लरसपरिणता अपि४, मधुररसपरिणता अपि५। स्पर्शत: कर्कशस्पर्शपरिणता अपि१, मृदुकस्पर्शपरिणता अपि२, शुरुकस्पर्शपरिणता अपि३, लघकस्पर्शपरिणना अपि४, शीतस्पर्शपरिणता अपि५, उष्णस्पपिरिणता अपिद, स्निग्धस्पर्शपरिणता अपि७, रूक्षस्पर्शपरिणता अपि८२०॥१०॥ सैपारूप्यजीव प्रज्ञापना । सैषा-अनीव प्रज्ञापना ।सू०९॥ (रसओ) रस से (त्तितरसपरिणया वि) तिक्त रस परिणाम वाले भी हैं (कडुयरसपरिणया वि) कटुक रल परिणाम वाले भी हैं (कसायरसपरिणया वि) कषाय रस परिणाम वाले भी हैं (अविलरसपरिणया वि) आम्ल रस परिणाम वाले भी हैं (महुररसपरिणया वि) मधुर रस परिणाम वाले भी हैं। (फासओ) स्पर्श से (कखडफासपरिणया वि) कर्कश स्पर्श परिणामवाले भी हैं (मउयफासपरिणया वि) मृदु स्पर्श परिणामवाले भी हैं (गरुयफासपरिणया वि) शुरु स्पर्श परिणामवाले भी हैं (लहुयफासपरिणया वि) लघु स्पर्श परिणामवाले भी हैं (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्श परिणामवाले भी हैं (उसिणफासपरिणया वि) उष्ण स्पर्श परिणामवाले भी हैं (गिद्ध फासपरिणया वि) स्निग्ध स्पर्श परिणामवाले भी हैं लुक्खफासपरिणया वि) रूक्ष स्पर्श परिणामवाले भी हैं। (सेत्तं रूवि अजीव पन्नवणा) यह रूपी अजीव की प्रज्ञापना हई (से तं अजीबपन्नवणा) यह अजीव की प्रज्ञापना हुई सू०॥९॥ (दुन्भिगंधपरिणया वि) हुमन्य परिणाम पY छे. _ (ग्सओ) २सथी (तित्त' सपरिणया वि) तित २५ परिवार पर छ (कडुयरसपरिणया वि) ४९४ २२५ परिणाममा ५ छ (कसायरसपरिणया वि) ४षाय २स परिणामवाणा पशु छ (अंक्लिरसपरिणया वि) 21 २सना परिणाम पापा ५ छ (महुररसपरिणया वि) मधु२ २स पासवाणा पण छे. (फासओ) २५४थी (कक्खडफासपरिणया वि) ४४५ २५ परिणाम ५५५ छ (मउयफासपरिणया वि) मुटुश परिणाम ५५ छ (गरुयफासपरिणया कि) शु३ २५४ ५२ भवाय ५५ (लहुयफ सपरिणया वि) धु२५० परिणामवाणा पण छे (सीयफ.सपरिणया वि) शीत २५ परिणामवाण ५५५ छ (उसिणफासपरिणया वि) ELY २५ परिणाम प छ (णिद्धफासपरिणया वि) सन २५श परिमाण ५१ छ (लुखफासपरिणया वि) રૂક્ષ સ્પર્શ પરિણામવાળા પણ છે. . (सेत्तं रूवि अजीवपन्नवण:) २॥ रीते २मा ३पी मनी प्रज्ञापन। थs (से तं अजीवपन्नवण.) २॥ शते २५नी प्रज्ञापना ४ी छ, ॥ सू. ८ ॥ प्र० २०
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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